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हिसार में माइक्रोबियल एंजाइमों की मदद से कागज से निकाली जा सकेगी स्याही , दोबारा हो सकेगा प्रयोग
हिसार। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कृषि एवं प्राकृतिक विज्ञान संस्थान निदेशक डॉ. दिनेश यादव भविष्य में कागज को रिसाइकिल कर नए कागज के तौर पर प्रयोग किया जाएगा। इसके लिए कैमिकल की जरूरत नहीं होगी। माइक्रोबियल एंजाइमों की मदद से कागज को रिसाइकिल कर उसका उपयोग किया जा सकेगा। एंजाइमों की मदद से कागज की स्याही को भी निकाला जा सकेगा। जिससे कागज पहले की तरह से प्रयोग किया जा सकेगा।
हिसार के लुवास में आयोजित तीन दिवसीय नेशनल कांफ्रेंस में पहुंचे डॉ. दिनेश यादव ने बताया कि वेस्ट एक मुसीबत बनता जा रहा है। जिसमें 40 प्रतिशत एग्रीकल्चर वेस्ट है। जिसको रिसाइकिल करना बेहद जरूरी होने के साथ आसान भी है। एग्रीकल्चर वेस्ट को ईंधन से लेकर खाद के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है। इसमें काफी हद तक काम हो रहा है। दूसरे वेस्ट में प्लास्टिक आता है। वैज्ञानिक कुछ इस तरह के एंजाइम को खोजने का प्रयास कर रहे हैं जिससे प्लास्टिक को खत्म किया जा सके। इसमें अभी पूरी तरह से सफलता नहीं मिल सकी है।
तीसरे पेपर वेस्ट को लेकर दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कृषि एवं प्राकृतिक विज्ञान संस्थान ने एक शोध किया है। साइंटिस्ट डॉ. ऐमान तनवीर और शोधार्थी डॉ. सुप्रिया गुप्ता के शोध समूह ने कुछ बैक्टीरिया और फंगस को मिट्टी से अलग किया है, जो औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण बहु-एंजाइम उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं। कागज निर्माण में माइक्रोबियल एंजाइमों के उपयोग को एक सतत समाधान के रूप में विकसित करने की दिशा में काम किया है।
एसपरगीलियस एसीयुटेंसिस फंगस एक साथ कई एंजाइम उत्पन्न करने में सक्षम है। जो वेस्ट कागज को पुनः उपयोग योग्य बनाने में उपयोगी है। इस फंगस से प्राप्त एंजाइम मिश्रण का उपयोग कर पुराने मुद्रित कागज से स्याही को प्रभावी रूप से हटाया जा सकता है। अभी तक कागज पुनर्चक्रण प्रक्रिया में स्याही हटाने के लिए रासायनिक पदार्थों का उपयोग किया जाता है। ऐसे रासायनिक पदार्थ पर्यावरण प्रदूषण बढ़ाते हैं। एंजाइम आधारित विधि से स्याही को पर्यावरण अनुकूल तरीके से हटाया जा सकता है। इस प्रक्रिया में उत्पन्न अपशिष्ट जल जल स्रोतों को प्रदूषित नहीं करता। डॉ. दिनेश यादव ने बताया कि एंजाइम-आधारित डी-इंकिंग प्रक्रिया के लिए पेटेंट भी दायर किया है।
रद्दी कागज से उगेंगे पेड़...
हस्तनिर्मित कागज निर्माण पर भी एक महत्वपूर्ण कार्य किया है। हस्तनिर्मित कागज एक पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद होता है, जो अनूठी बनावट, रंग और एहसास प्रदान करता है। इसे सजावटी हैंडबैग, गिफ्ट फोल्डर आदि के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। अधिकांश प्रसंस्करण इकाइयां रसायनों का उपयोग करके हस्तनिर्मित कागज बनाती हैं। नए शोध में बैक्टीरिया से प्राप्त एंजाइम मिश्रण का उपयोग कर हस्तनिर्मित कागज निर्माण की विधि विकसित की है। जिसमें गन्ने की खोई और गेहूं की भूसी के साथ एंजाइम मिश्रण कर उत्पाद बनाए जा रहे हैं। ऐसे कागज में बीज भी डाले गए हैं। यह स्टेशनरी रद्दी होने के बाद फेंकने पर पौधों में परिवर्तित हो जाएगी। इस के लिए भी एक पेटेंट दायर किया गया है।
शोधकर्ताओं ने बॉटनिकल गार्डन की मिट्टी से प्राप्त एक बैक्टीरिया को भी अलग किया। यह बैक्टीरिया भी बहु-एंजाइम उत्पन्न करता है। जिसका उपयोग फलों के रस की स्पष्टता बढ़ाने, तेल निष्कर्षण और प्राकृतिक रेशों के रेटिंग में किया जा सकता है। इस बैक्टीरिया से उत्पन्न एंजाइम पोल्ट्री उद्योग के लिए भी उपयोगी साबित हो सकता है। यह मुर्गी पालन से उत्पन्न पंखों के अपशिष्ट को आसानी से अपघटित करने में सक्षम है।
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