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After the Supreme Court, now the Madras High Court is also strict on stray dogs
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आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट के बाद अब मद्रास हाईकोर्ट भी सख्त
वीडियो डेस्क अमर उजाला डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Wed, 13 Aug 2025 12:09 PM IST
देशभर में आवारा कुत्तों का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते कुत्तों के हमलों को देखते हुए सख्त दिशा-निर्देश जारी किए थे। अब मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने भी इस समस्या पर गंभीर रुख अपनाते हुए संकेत दिए हैं कि वे भी राज्य सरकार को इस मामले में ठोस कदम उठाने का आदेश दे सकती है।
मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने अदालत में जो आंकड़े पेश किए, वे चौंकाने वाले हैं। दावा किया गया कि तमिलनाडु में इस साल अब तक 3.67 लाख से ज्यादा लोग कुत्तों के हमले का शिकार हुए हैं। इनमें से 20 लोगों की मौत रेबीज संक्रमण के कारण हुई है।
याचिकाएं केवल आवारा कुत्तों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सड़कों पर घूमते आवारा पशुओं और मंदिरों में श्रद्धालुओं पर कुत्तों के हमलों से जुड़ी घटनाओं को भी कवर करती हैं। अदालत ने इन मामलों को गंभीर मानते हुए कहा कि समस्या केवल पालतू पशुओं के प्रबंधन की नहीं, बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा की भी है।
पीठ ने कहा कि वे पहले सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेशों का विस्तृत अध्ययन करेंगे और उसके बाद संयुक्त आदेश जारी करेंगे। इससे संकेत मिलते हैं कि मद्रास हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट की तर्ज पर तमिलनाडु में भी सख्त दिशा-निर्देश लागू करने की दिशा में बढ़ सकता है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों की पहचान, उन्हें पकड़ने, आश्रय स्थलों में रखने और नसबंदी-टीकाकरण के लिए स्पष्ट गाइडलाइन दी थी। अदालत ने यह भी कहा था कि आम लोगों की सुरक्षा सर्वोपरि है।
इस मामले में समाज दो हिस्सों में बंटा हुआ दिख रहा है। एक ओर, पशु कल्याण कार्यकर्ता सुप्रीम कोर्ट और संभावित हाईकोर्ट आदेशों पर चिंता जता रहे हैं। उनका कहना है कि देश में पहले से ही जानवरों के लिए आश्रय स्थलों की भारी कमी है। पर्याप्त कार्यबल और पशु विशेषज्ञ न होने के कारण इतनी बड़ी संख्या में आवारा कुत्तों का सही ढंग से देखभाल करना लगभग असंभव होगा।
पशु अधिकार कार्यकर्ताओं का तर्क है कि कुत्तों को भी जीने का अधिकार है। अगर उन्हें बिना तैयारी के आश्रय स्थलों में रखा गया, तो भूख-प्यास और बीमारियों से उनकी मौत हो सकती है। उनका सुझाव है कि इस समस्या का समाधान बड़े पैमाने पर नसबंदी और टीकाकरण अभियान के जरिए निकाला जाए।
दूसरी ओर, बड़ी संख्या में लोग सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों और संभावित हाईकोर्ट आदेश का समर्थन कर रहे हैं। उनका कहना है कि आवारा कुत्तों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और उनके हमले जानलेवा साबित हो रहे हैं।
इन लोगों का मानना है कि आज के समय में रेबीज जैसी बीमारी से मौत होना शर्मनाक है। उनका कहना है कि आम नागरिकों की जान बचाना प्राथमिकता होनी चाहिए, चाहे इसके लिए कितने भी सख्त कदम क्यों न उठाने पड़ें।
कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि अदालत को इस मामले में संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा। एक तरफ मानव जीवन की सुरक्षा और दूसरी तरफ जानवरों के अधिकार—दोनों का संतुलन बनाए रखना चुनौतीपूर्ण है।
अगर अदालत सुप्रीम कोर्ट जैसी गाइडलाइन लागू करती है, तो राज्य सरकार के सामने भी चुनौती होगी—आश्रय स्थल, टीकाकरण और नसबंदी अभियान के लिए पर्याप्त संसाधन जुटाना।
पशु चिकित्सकों का मानना है कि आवारा कुत्तों की समस्या का स्थायी समाधान केवल पकड़कर रखने से नहीं, बल्कि जन्म दर पर नियंत्रण से संभव है। इसके लिए हर जिले में नियमित नसबंदी केंद्र, टीकाकरण कार्यक्रम और सार्वजनिक जागरूकता अभियान चलाना जरूरी होगा।
इसके साथ ही, सड़कों और मंदिरों में कुत्तों के हमलों से बचाव के लिए नगर निगमों को सफाई व्यवस्था मजबूत करनी होगी, ताकि कचरे और खाने के खुले स्रोत कम हों।
मद्रास हाईकोर्ट का आने वाला फैसला तमिलनाडु में आवारा कुत्तों के प्रबंधन की दिशा तय कर सकता है। यह मामला सिर्फ कानून या प्रशासन का नहीं, बल्कि समाज के दृष्टिकोण, संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का भी है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों के रुख से साफ है कि अब इस समस्या को अनदेखा करना संभव नहीं।
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