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America deployed fighter planes and ships, is Trump going to do something big?
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अमेरिका ने तैनात किए लड़ाकू विमान और जहाज, ट्रंप करने वाले कुछ बड़ा?
वीडियो डेस्क अमर उजाला डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Wed, 18 Jun 2025 03:53 PM IST
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पश्चिम एशिया के आसमान इन दिनों असामान्य रूप से गरम हैं। मिसाइलें उड़ रही हैं, ड्रोन हवा में मंडरा रहे हैं, और समुद्र में युद्धपोतों की आवाजाही बढ़ गई है। इस सब के बीच एक बड़ा सवाल गूंज रहा है — क्या अमेरिका सिर्फ इस्राइल की रक्षा कर रहा है या ईरान पर एक बड़ा हमला करने की तैयारी में है?
ईरान और इस्राइल के बीच लंबे समय से चले आ रहे तनाव ने हाल के हफ्तों में युद्ध जैसे हालात पैदा कर दिए हैं। इस संघर्ष की आंच में अब अमेरिका भी खुलकर शामिल होता दिखाई दे रहा है। हालांकि अमेरिका ने अभी तक इसे ‘सिर्फ रक्षात्मक कार्रवाई’ बताया है, लेकिन उसके हथियारों और सेनाओं की तैनाती कुछ और ही संकेत दे रही है।
ईरान की ओर से इस्राइल पर दागे गए ड्रोन और मिसाइलों को मार गिराने के लिए अमेरिका ने पश्चिम एशिया में जबरदस्त सैन्य ताकत तैनात की है। अमेरिकी युद्धपोत, लड़ाकू विमान, और एयर-रिफ्यूलिंग टैंकर्स इस समय इलाके में सक्रिय हैं।
यूएसएस कार्ल विंसन जैसे विमानवाहक पोत, जो चार अन्य युद्धपोतों के साथ अरब सागर में तैनात है, न सिर्फ इस्राइल बल्कि ओमान की खाड़ी और फारस की खाड़ी में मौजूद अमेरिकी ठिकानों की सुरक्षा में लगा है। इसके अलावा, यूएसएस द सुलिवंस और यूएसएस आर्ले बर्क जैसे विध्वंसक जहाजों ने हाल ही में ईरान की ओर से छोड़ी गई मिसाइलों को हवा में ही नष्ट कर दिया।
इन ऑपरेशनों के दौरान अमेरिका ने कहा है कि वह सिर्फ इस्राइल की रक्षा कर रहा है, लेकिन इन हमलों की तीव्रता और तैयारी को देखकर कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सिर्फ बचाव नहीं, बल्कि बड़े हमले की पूर्व तैयारी हो सकती है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी इस मामले में आग में घी डालने का काम कर चुके हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट करके कहा है कि “ईरान से अब धैर्य खत्म हो रहा है।” ट्रंप पहले भी कह चुके हैं कि ईरान के परमाणु हथियारों का अंत जरूरी है और अगर जरूरत पड़ी तो अमेरिका इस दिशा में ‘बड़ा कदम’ उठा सकता है।
ट्रंप की इन टिप्पणियों को लेकर अटकलें तेज हैं कि अमेरिका अब ईरान के परमाणु ठिकानों को बंकर बस्टिंग बमों से निशाना बना सकता है, जिनका उपयोग भूमिगत गहराई में छिपे ठिकानों को नष्ट करने के लिए होता है।
अमेरिका ने यूरोप में भी अपनी सैन्य तैयारी को मजबूत किया है। इंग्लैंड, स्पेन, जर्मनी और ग्रीस में अमेरिकी वायुसेना के लड़ाकू विमान और एयर-रिफ्यूलिंग टैंकर्स तैनात कर दिए गए हैं। इन विमानों को पश्चिम एशिया की ओर रवाना किया जा रहा है ताकि जरूरत पड़ने पर वे बिना ईंधन की चिंता किए लंबी उड़ान भर सकें और तुरंत जवाबी कार्रवाई कर सकें।
इसके अलावा, लाल सागर, भूमध्य सागर और बाल्टिक सागर में भी अमेरिकी जहाज सक्रिय अभ्यास कर रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे अमेरिका ने एक ‘घेरा’ बना दिया है — एक ऐसा घेरा जो ईरान के चारों तरफ धीरे-धीरे कसता जा रहा है।
इस्राइल के पास बंकर बस्टिंग बमों को पहुंचाने वाले विमान नहीं हैं। ये बेहद भारी और विशेष संरचना वाले हथियार होते हैं जो भूमिगत ठिकानों को ध्वस्त करने में सक्षम हैं। सिर्फ अमेरिका के पास ऐसे विमानों की तकनीक है।
यही वजह है कि अब ये अटकलें लगाई जा रही हैं कि अमेरिका, इस्राइल को सिर्फ ‘सहायता’ नहीं दे रहा, बल्कि खुद भी सीधे तौर पर हमला करने की योजना बना रहा है। यूएसएस निमिट्ज नामक विशाल विमानवाहक पोत की तैनाती और उसकी अरब सागर की ओर बढ़त इस आशंका को और बल देती है।
ईरान पहले ही चेतावनी दे चुका है कि यदि उसके परमाणु ठिकानों पर हमला होता है तो वह पूरे पश्चिम एशिया को युद्ध की आग में झोंक देगा। हिजबुल्ला और हौथी जैसे गुट पहले से ही अमेरिका और इस्राइल के खिलाफ कार्रवाई की धमकी दे चुके हैं।
ऐसे में अगर अमेरिका ने वाकई कोई सीधा हमला किया, तो यह संघर्ष सीमित नहीं रहेगा — यह पूरे पश्चिम एशिया को अपनी चपेट में ले सकता है।
फिलहाल अमेरिका ‘रक्षात्मक रणनीति’ की बात कर रहा है, लेकिन उसके कदम एक संभावित बड़े हमले की तैयारी जैसे लगते हैं। अगर यह सिर्फ इस्राइल की रक्षा है, तो हथियारों की ये बड़ी खेप और युद्धपोतों का यह जमावड़ा क्यों?
दुनिया की निगाहें अब इस पर टिकी हैं कि अमेरिका अपने अगले कदम में क्या करता है — क्या वह ईरान पर निशाना साधेगा या अब भी कूटनीति का रास्ता खुला है?
संभावना यही है कि आने वाले दिनों में पश्चिम एशिया एक बड़े भूचाल की ओर बढ़ रहा है — और उसका केंद्र अमेरिका हो सकता है।
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