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Strictness on three, why the rest are spared? The whole story behind SP's decision
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तीन पर सख्ती, बाकी बचे क्यों? SP के फैसले के पीछे की पूरी कहानी
वीडियो डेस्क अमर उजाला डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Tue, 24 Jun 2025 01:42 PM IST
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समाजवादी पार्टी में सख्ती का दौर शुरू हो चुका है, लेकिन इस सख्ती के पीछे छिपी रणनीति पर अब सवाल खड़े हो रहे हैं। सोमवार को पार्टी ने जिन तीन विधायकों को बाहर का रास्ता दिखाया, उन्होंने तो खुलकर पार्टी लाइन के खिलाफ काम किया, मगर राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग करने वाले बाकी बागी विधायकों पर चुप्पी क्यों है? क्या ये सिर्फ अनुशासन की बात है, या इसके पीछे कोई और रणनीति छिपी है?
राज्यसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के कुल आठ विधायकों ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में हिस्सा लिया था। इनमें से सात ने क्रॉस वोटिंग की और एक विधायक वोटिंग से गैरहाजिर रहे। बावजूद इसके, सिर्फ तीन – मनोज कुमार पांडेय, राकेश प्रताप सिंह और अभय सिंह पर ही पार्टी ने कार्रवाई की। यही नहीं, पार्टी प्रवक्ता और पूर्व मंत्री राजेंद्र चौधरी ने इस पर कहा कि यह “सोच-समझकर लिया गया फैसला” है।
पार्टी सूत्र बताते हैं कि इन तीनों विधायकों ने न केवल राज्यसभा चुनाव में पार्टी के खिलाफ मतदान किया, बल्कि बीते कुछ महीनों से पार्टी नेतृत्व के खिलाफ खुलेआम अभियान चला रहे थे। इनकी भाजपा के साथ निकटता भी किसी से छिपी नहीं थी।
वहीं, बाकी पांच विधायकों को पार्टी ने अभी निष्कासित नहीं किया। इसका कारण बताया जा रहा है कि वे अब भी पार्टी नेतृत्व के संपर्क में हैं। कुछ तो अपनी ‘घर वापसी’ की कोशिशों में भी जुटे हुए हैं। यानी समाजवादी पार्टी अभी भी कुछ बागियों के लिए दरवाजे खुले रखे हुए है।
तीनों बागी विधायकों में सबसे बड़ा नाम है मनोज कुमार पांडेय का, जो रायबरेली की ऊंचाहार सीट से विधायक हैं। मनोज पांडेय न सिर्फ चार बार विधायक रह चुके हैं, बल्कि वे 2004-07 और 2012-17 की सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं। उन्हें सपा के राष्ट्रीय सचिव और प्रदेश उपाध्यक्ष जैसी जिम्मेदारियां भी मिल चुकी हैं। राज्यसभा चुनाव में जब उन्होंने भाजपा के पक्ष में वोट डाला, तब भी वे विधानसभा में सपा के मुख्य सचेतक थे।
अब सूत्रों के मुताबिक, मनोज पांडेय जल्द ही विधानसभा से इस्तीफा दे सकते हैं, ताकि भाजपा से उपचुनाव लड़ सकें। ऐसा करने से वे दल-बदल कानून के दायरे में नहीं आएंगे और भाजपा उन्हें खुलकर समर्थन दे सकेगी। उनके नजदीकी सूत्र दावा करते हैं कि उन्हें भाजपा नेतृत्व से महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का भरोसा भी मिल चुका है।
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि भाजपा इस मामले में बेहद सावधानी से कदम रख रही है। वह नहीं चाहती कि समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर आए किसी विधायक को सीधे कोई मंत्री पद या अहम जिम्मेदारी देकर गलत संदेश दिया जाए। इसलिए उन्हें पहले विधानसभा से इस्तीफा देने के लिए कहा गया है।
कुछ वैसा ही उदाहरण 2022 में देखने को मिला था, जब सपा के टिकट पर जीतकर आए दारा सिंह चौहान ने भाजपा में शामिल होने के बाद इस्तीफा दिया था। हालांकि उपचुनाव में हार के बाद भी उन्हें विधान परिषद भेजकर मंत्री बना दिया गया।
अब सवाल उठता है कि क्या मनोज पांडेय को भी दारा सिंह चौहान की तरह ही कोई रास्ता दिखाया जाएगा? फिलहाल यही संकेत मिल रहे हैं कि पांडेय को उपचुनाव में भाजपा टिकट देकर उतारा जाएगा और जीतने पर उन्हें सरकार में कैबिनेट स्तर की जिम्मेदारी मिल सकती है।
पार्टी सूत्र बताते हैं कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की ओर से यह स्पष्ट कर दिया गया है कि “जो भी सपा छोड़कर आए, उसे सबसे पहले जनता के बीच जाकर दोबारा जनमत लेना होगा”। यही भाजपा का नया मंत्र है – “जनता से मंजूरी, फिर मंत्री पद”।
सपा के भीतर यह पूरा घटनाक्रम भारी मंथन का विषय बन गया है। पार्टी को न सिर्फ अपने संगठनात्मक ढांचे को दुरुस्त करना है, बल्कि भविष्य के चुनावों से पहले विश्वसनीयता भी बहाल करनी है। ऐसे में, तीन विधायकों की निष्कासन की कार्रवाई एक सख्त संदेश है – कि अनुशासनहीनता अब बर्दाश्त नहीं होगी।
हालांकि, विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है कि बाकी पांच विधायकों को क्यों बख्शा गया? इस पर सपा के नेता कहते हैं कि राजनीतिक संगठन में हर कदम रणनीति के तहत होता है, भावनाओं के तहत नहीं। इसलिए जिनसे सुधार की उम्मीद है, उन्हें वक्त दिया गया है।
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