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Supreme Court on Stray Dogs: After Rahul Gandhi, Maneka Gandhi raised questions, told the story of Paris.
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Supreme Court on Stray Dogs: राहुल गांधी के बाद मेनका गांधी ने उठाए सवाल, पेरिस की सुनाई कहानी।
वीडियो डेस्क, अमर उजाला डॉट कॉम Published by: अभिलाषा पाठक Updated Wed, 13 Aug 2025 11:21 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि दिल्ली-एनसीआर की सड़कों से सभी आवारा कुत्तों को हटाकर उन्हें शेल्टर होम्स में रखा जाए. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद ही हर तरफ से रिएक्शन सामने आ रहे हैं. कई लोग इसका विरोध कर रहा है. बीजेपी नेता मेनका गांधी भी कोर्ट के इस निर्देश का जमकर विरोध कर रही हैं.कोर्ट के इस निर्णय के बाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री और पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी ने जहां कोर्ट के इस आदेश की आलोचना की है. वहीं, उन्होंने इस फैसले को अव्यावहारिक, आर्थिक रूप से अव्यवहारिक बताया है. मेनका गांधी का कहना है कि कुत्तों के लिए शेल्टर होम्स बनाने के लिए आधा एकड़ जमीन और 15 हजार करोड़ की जरूरत पड़ेगी. इसी बीच मेनका गांधी ने साल 1880 में पेरिस के एक ऐसे किस्से का जिक्र किया है. जहां सड़कों से कुत्तों को हटाना देश के लिए भारी पड़ गया.मेनका गांधी ने पेरिस का जिक्र कर डराया...मेनका गांधी ने चेतावनी देते हुए कहा कि आवारा कुत्तों को हटाने से नई समस्याएं पैदा हो सकती हैं. उन्होंने कहा, जैसे ही आप कुत्तों को सड़कों से हटाएंगे, बंदर जमीन पर आ जाएंगे.
1880 के दशक में पेरिस में जो हुआ उसका जिक्र करते हुए बीजेपी नेता ने कहा, जब पेरिस ने कुत्तों और बिल्लियों को हटाया तो शहर चूहों से भर गया. 1800 के दशक में कुत्तों को रेबीज, पिस्सू और गंदगी फैलाने वाले खतरनाक जानवर माना जाता था. वो पेरिस की सड़कों पर बड़ी संख्या में घूमते थे. पेरिस प्रशासन आवारा कुत्तों को स्वच्छता, स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए खतरा मानता था. 1880 के दशक में कथित तौर पर कुत्तों और बिल्लियों का बड़े पैमाने पर मारा गया था ताकि शहर में रेबीज़ जैसी बीमारियों पर नियंत्रण पाया जा सके. यह कदम फ्रांसीसी राजधानी को अधिक आधुनिक और सुरक्षित बनाने के मकसद से उठाया गया था. लेकिन, माना जाता है कि सड़कों पर जानवरों की कमी के कारण शहर में चूहों की संख्या में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई, जो नालियों और गलियों से लोगों के घरों तक फैल गए. स्ट्रे डॉग्स एंड द मेकिंग ऑफ मॉडर्न पेरिस’ नाम के एक रिसर्च पेपर के अनुसार, 1883 में रेबीज़ की चिंता के चलते शहर में कुत्तों को नियंत्रित करने की कोशिश की गई थी. लेकिन उसी समय बिल्लियों के मारे जाने का कोई उल्लेख नहीं है. एमिल कैप्रोन नाम के एक फार्मासिस्ट ने सड़कों से आवारा कुत्तों को हटाने की अपील की थी. उस समय ये कुत्ते घोड़ों को डराते थे, जिसकी वजह से दुर्घटनाएं होती थीं. इतिहासकार रॉबर्ट डार्टन ने अपनी 1984 की किताब ‘द ग्रेट कैट मैसैकर एंड अदर एपिसोड्स इन फ्रेंच कल्चरल हिस्ट्री’ में पेरिस में बिल्लियों के नरसंहार का जिक्र किया है, लेकिन यह घटना 1730 की है.
मेनका गांधी ने कोर्ट के फैसले पर कहा, कुत्तों को जब एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता है तब वो काटते हैं. साथ ही उन्होंने आवारा कुत्तों की बढ़ती तादाद और काटने से हो रही परेशानी का समाधान बताते हुए कहा, सभी कुत्तों की नसबंदी हो और उन्हें इधर उधर करना बंद कर दें.कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने दिल्ली-एनसीआर से सभी आवारा कुत्तों को हटाने का सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा है कि ये दशकों से चली आ रही मानवीय और साइंटिफिक पॉलिसी से पीछे ले जाने वाला कदम है. ये बेज़ुबान आत्माएं कोई 'समस्या' नहीं हैं, जिन्हें मिटाया जा सके. आश्रय, नसबंदी, टीकाकरण और सामुदायिक देखभाल के जरिये सड़कों को बिना किसी क्रूरता के सुरक्षित रखा जा सकता है. इस पर पूरी तरह पाबंदी क्रूर-अदूरदर्शी है और हमारी करुणा को खत्म करता है. हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि जन सुरक्षा और पशु कल्याण दोनों कैसे एक साथ-साथ चलें.राहुल गांधी ही नहीं बल्कि मेनका गांधी ने भी सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर सवाल उठाए हैं. मेनका गांधी ने कहा, “दिल्ली में तीन लाख आवारा कुत्ते हैं. उन सभी को पकड़कर शेल्टर होम भिजवाया जाएगा. उनको सड़कों से हटाने के लिए दिल्ली सरकार को 1 हजार या 2 हजार शेल्टर होम बनाने होंगे. क्योंकि ज्यादा कुत्तों को एक साथ नहीं रखा जा सकता. सबसे पहले तो उसके लिए जमीन तलाशनी होगी. इस पर 4-5 करोड़ के करीब का खर्च आएगा. क्योंकि हर सेंटर में केयरटेकर, खाना बनाने वाले और खिलाने वाले, और चौकीदार की व्यवस्था करनी होगी." उन्होंने कहा, "सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश गुस्से में और व्यवहार्यता पर विचार किए बिना पारित किया गया हो सकता है. उन्होंने इस फैसले की वैधता पर भी सवाल उठाया और कहा कि एक महीने पहले ही सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य बेंच ने इसी मुद्दे पर एक "संतुलित फैसला" सुनाया था. अब, एक महीने बाद, दो सदस्यीय बेंच ने एक और फैसला सुनाया है जिसमें कहा गया है कि 'सबको पकड़ो'. कौन सा फैसला सही है? ज़ाहिर है, पहला वाला, क्योंकि वह एक स्थापित फैसला है."
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