बारिश जब कहर बनकर टूटे, तो इंसान की हिम्मत ही उसकी सबसे बड़ी ताकत बनती है। कुछ ऐसा ही हुआ छिंदवाड़ा जिले के हर्रई विकासखंड के राजढाना गांव में, जहां एक किसान ने उफनती नदी में बहती अपनी बैलगाड़ी को रोकने के लिए अपनी जान की परवाह किए बिना छलांग लगा दी। उसने न केवल अपनी जान बचाई, बल्कि अपने दोनों बैलों की जान भी सुरक्षित बचा ली। यह घटना न केवल साहस की मिसाल बन गई, बल्कि ग्रामीणों के दिलों में भी हमेशा के लिए छाप छोड़ गई।
अचानक बढ़ा पानी, बैलगाड़ी बहने लगी
शनिवार सुबह जब किसान खेत से बैलगाड़ी लेकर लौट रहा था, तो वह गांव के पास नदी पर बने रपटे पर कुछ देर के लिए रुका। उस समय हल्की बारिश हो रही थी, लेकिन किसी को अंदाजा नहीं था कि ऊपरी इलाकों में तेज बारिश के कारण नदी का जलस्तर अचानक बढ़ने वाला है। कुछ ही मिनटों में बहाव तेज हो गया और पानी गाड़ी के पहियों तक पहुंच गया। जब तक किसान कुछ समझ पाता, बैलगाड़ी बहने लगी और बैल खिंचते हुए पानी में डूबने लगे।
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बिना सोचे कूद पड़ा किसान, दिखाया अद्भुत साहस
अधिकतर लोग ऐसी स्थिति में घबरा जाते हैं, लेकिन किसान ने पल भर भी नहीं गंवाया। उसने अपनी लुंगी कसकर बांधी और उफनती धारा में सीधे कूद पड़ा। तेज बहाव में बैलों की रस्सी पकड़कर वह खुद को और बैलों को संभालता रहा। अपनी मेहनत और बैलों से बने रिश्ते ने उस दिन उसका साथ दिया। कुछ ही मिनटों की संघर्ष के बाद उसने दोनों बैलों को सुरक्षित किनारे खींच लिया। थके हुए, भीगे हुए- मगर जिंदा।
‘ईश्वर ने उसकी हिम्मत देखी और साथ दिया’
घटना को देखकर गांव के लोग स्तब्ध रह गए। कुछ मदद के लिए दौड़े, लेकिन तब तक किसान अपने बैलों को बचा चुका था। गांव के बुजुर्ग रामलाल ने कहा कि अगर वो दो मिनट और रुकता, तो बैल तो दूर खुद भी बह जाता। ईश्वर ने उसकी हिम्मत देखी और साथ दिया।
प्रशासन की चेतावनी, लेकिन जमीनी हकीकत अलग
जिले में भारी बारिश के चलते प्रशासन ने पहले ही चेतावनी जारी कर रखी थी कि ग्रामीण नदी-नालों के पास न जाएं। लेकिन राजढाना जैसे गांवों में न कोई संकेतक बोर्ड है, न बैरिकेडिंग, जिससे लोग जोखिम लेने को मजबूर हो जाते हैं। ग्रामीणों में नाराजगी है कि हर साल इस नदी पर खतरा रहता है, लेकिन अब तक कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई।
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‘अगर जान न बचती, तो केवल लाशें गिनते’
गांव के एक अन्य निवासी ने गुस्से में कहा कि आज तो सब ठीक रहा, लेकिन अगर जान न बचती तो इस हादसे की रिपोर्ट लाशों के साथ बनती। कब तक ऐसे ही अपनी जान हथेली पर रखकर जीना पड़ेगा?