सरकार की प्रधानमंत्री जनमन आवास योजना के तहत बैगा जनजाति को पक्के घर देने का वादा किया गया था। लेकिन डिंडोरी जिले के भुरका गांव में यह वादा अभी अधूरा है। योजना की दूसरी किश्त की राशि नहीं मिलने की वजह से बैगा आदिवासी अब भी झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं।
मेहदवानी जनपद की ग्राम पंचायत भुरका में बैगा जनजाति के 170 लोगों को इस योजना के तहत घर बनाने की मंजूरी मिली थी। इनमें से 117 लोगों को अब तक दूसरी किश्त की राशि नहीं मिली है। पहली किश्त अक्टूबर 2024 में मिली थी, जिसके बाद लोगों ने पक्का घर बनाना शुरू कर दिया था। लेकिन अब आठ महीने बीत चुके हैं और दूसरी किश्त का इंतजार अभी भी जारी है।
इस हालात ने आदिवासी परिवारों को बड़ी आर्थिक परेशानी में डाल दिया है। कई लोगों ने अपने पुराने कच्चे घर तोड़ दिए और घर बनाने के लिए गहने-जेवर तक गिरवी रख दिए। लेकिन जब पैसे खत्म हो गए और दूसरी किश्त नहीं मिली, तो मकानों का काम अधूरा रह गया। अब ये परिवार फिर से झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं। बैगा आदिवासी कहते हैं कि किसी तरह सर्दी-गर्मी तो निकाल ली, लेकिन अब बारिश आने वाली है और ऐसे में पक्के घर का न होना उनकी सबसे बड़ी चिंता है।
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लाभ पाने वाले लोगों ने जनपद और जिला कार्यालय में कई बार शिकायत की, लेकिन कहीं से मदद नहीं मिली। अधिकारियों की लापरवाही से आदिवासी बहुत निराश हैं। यह योजना आदिवासियों को आगे बढ़ाने के लिए थी, लेकिन जमीनी स्तर पर ध्यान न देने की वजह से यह एक मजाक बन गई है।
जब इस मामले पर शहपुरा एसडीएम ऐश्वर्य बर्मा से बात की गई, तो उन्होंने कहा कि एक टीम भेजकर जांच कराई जाएगी और जल्दी ही समाधान निकाला जाएगा। यह स्थिति साफ दिखाती है कि सरकार की योजनाएं और ज़मीनी सच्चाई के बीच बहुत फर्क है। बैगा आदिवासी अब सवाल उठा रहे हैं कि क्या योजनाएं सिर्फ कागजों पर ही पूरी होंगी या उन्हें सच में मदद मिलेगी?