जिले में इस बार टमाटर की बंपर पैदावार हुई है, फिर भी किसानों की आंखों में आंसू हैं। उन्हें सब्जी मंडी में टमाटर भाव दो रुपये प्रति किलो ही मुश्किल से मिल रहे हैं। हालात यह हैं कि अब तो मजबूरी में किसान टमाटरों को खेत की मेड़ या सड़क पर फेंककर विरोध जताने लगे हैं। कुछ किसानों का कहना है कि उन्होंने तो खेत में ही फसल पर हल चलवा दिया, क्योंकि मजदूरी तक नहीं निकल पा रही थी।
कुछ माह पूर्व तक अपने रंग अनुरूप सुर्ख भावों को लेकर हमेशा चर्चा में रहने वाला टमाटर अब बेभाव हो चुका है। हालत यह है कि स्थानीय सब्जी मंडी में भाव नहीं मिल रहे हैं। सब्जी के थोक विक्रेता शादाब भाई का कहना है कि सब्जी मंडी में रोजाना दो सौ से तीन सौ क्विंटल करीब 500 से 1000 (एक कैरट में 25 से 30 किलो) आवक हो रही है, लेकिन हालत यह हो गई है कि मात्र 2 से 3 रुपये किलो में टमाटर खरीदी की जा रही है। टमाटर के भावों की बहुत बुरी हालत है। भाई टमाटर उत्पादकों का कहना है कि उत्पादन लागत ही टमाटर के विक्रय मूल्य से तीन गुना लगती है। उधर सब्जी विक्रेताओं के अनुसार ठंड के दिनों में सब्जियों के दामों में कमी आती है। इस समय टमाटर की जोरदार आवक होने के कारण टमाटर के मंडी में खरीदार नहीं मिल रहे हैं। इसके कारण टमाटर के भाव काफी कम हो गए हैं।
खेरची में 8 से 10 रुपये प्रतिकिलो बिक रहा टमाटर
बाजार में खेरची में टमाटर 8 से 10 रुपये किलो मिल रहा है। भावों में कमी का सीधा कारण अधिक उत्पादन होना और मांग कम होना है। जिले में टमाटर की कोई बड़ी प्रोसेसिंग यूनिट नहीं है। किसानों ने बेहतर तकनीक अपनाकर टमाटर फसल का उत्पादन तो अधिक ले लिया है, लेकिन उन्हें बाजार उपलब्ध नहीं हो पा रहा।
खेतों की मेड़ पर फेंक दिए टमाटर
रलावती के किसान करण सिंह मेवाड़ा, समर सिंह, किशन भगवान सिंह और रविंद्र ने बताया कि खेत में टमाटर लगाए थे। उत्पादन भी अच्छा निकल रहा है, लेकिन मंडियों में भाव नहीं मिलने से लागत निकालना तो दूर, मंडी तक उपज ले जाने का परिवहन महंगा पडऩे लगा है। ऐसे में खेत से निकली फसल को खेत की मेड़ पर फेंक दिया गया है। चंदेरी के किसान एमएस मेवाड़ा कहते हैं कि गेहूं, चने के समान सब्जियों का भी समर्थन मूल्य सरकार को घोषित करना चाहिए।
मजदूरी तक नहीं निकली, हल चलाकर नष्ट कर दी फसल
सीहोर के अमर सिंह कुशवाह कहते है कि दो महीने पहले टमाटर की फसल का उत्पादन लिया। जितना भाव लग रहा था, उतने में प्रतिदिन मजदूरी का पैसा निकलना भी मुश्किल हो रहा था। जनवरी में 2 रुपए किलो के भाव लगे और अब एक रुपए किलो के भाव लग रहे हैं। इसलिए फसल को हल चलाकर नष्ट कर दिया।