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Ujjain Mahakal: Baba Mahakal adorned with Rudraksha, Sevanti, lotus, and skull garlands.
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Ujjain Mahakal: अमावस्या पर रुद्राक्ष, सेवंती, कमल और मुंड माला से सजे बाबा महाकाल, फिर रमाई भस्म
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, उज्जैन Published by: उज्जैन ब्यूरो Updated Fri, 19 Dec 2025 07:24 AM IST
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पौष मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर आज शुक्रवार सुबह भस्म आरती के दौरान बाबा महाकाल के दरबार में हजारों श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ा। इस दौरान भक्तों ने देर रात से ही लाइन में लगकर अपने ईष्ट देव बाबा महाकाल के दर्शन किए। आज बाबा महाकाल भी भक्तों को दर्शन देने के लिए सुबह 4 बजे जागे। जिनका विभिन्न प्रकार के फूलों से शृंगार किया गया। भस्म आरती में भक्तों ने बाबा महाकाल के इस आलौकिक शृंगार के दर्शन दिए। जिससे पूरा मंदिर परिसर जय श्री महाकाल की गूंज से गुंजायमान हो गया।
श्री महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी पंडित महेश शर्मा ने बताया कि विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर मे पौष माह कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर आज शुक्रवार सुबह 4 बजे भस्म आरती हुई। इस दौरान वीरभद्र जी से आज्ञा लेकर मंदिर के पट खुलते ही पण्डे पुजारियों ने गर्भगृह में स्थापित सभी भगवान की प्रतिमाओं का पूजन किया। उसके बाद भगवान महाकाल का जलाभिषेक दूध, दही, घी, शक्कर पंचामृत और फलों के रस से किया गया। पूजन के दौरान प्रथम घंटाल बजाकर हरि ओम का जल अर्पित किया गया। पुजारियों और पुरोहितों ने इस दौरान बाबा महाकाल का आकर्षक स्वरूप में शृंगार कर कपूर आरती के बाद बाबा महाकाल को नवीन मुकुट धारण कराया। जिसके बाद महानिर्वाणी अखाड़े की ओर से भगवान महाकाल के शिवलिंग पर भस्म अर्पित की गयी। आज के शृंगार की विशेषता यह थी कि आज अमावस्या पर बाबा महाकाल के मस्तक पर वैष्णव तिलक लगाकर भांग से शृंगार किया गया। इस दौरान रुद्राक्ष, सेवंती, कमल और मुंड माला से शृंगार के बाबा महाकाल को भस्म रमाई गई। बाबा महाकाल के इन दिव्य दर्शनों का लाभ हजारों भक्तों ने लिया और जय श्री महाकाल का जयघोष भी किया। मान्यता है कि भस्म अर्पित करने के बाद भगवान निराकार से साकार स्वरूप में दर्शन देते हैं।
पितृकार्य, देवकार्य के लिए श्रेष्ठ है यह अमावस्या
आज पौष माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या है और यह साल 2025 की अंतिम अमावस्या है। पौष अमावस्या को दर्श अमावस्या भी कहा जा रहा है। दर्श अमावस्या हिंदू पंचांग में एक अत्यंत पवित्र तिथि मानी गई है। यह वह अमावस्या होती है, जो चंद्र मास के आरंभ में आती है। शास्त्रों में इसे पितृकार्य, देवकार्य और आत्मशुद्धि से विशेष रूप से जोड़ा गया है। ज्योतिष शास्त्र में पौष अमावस्या का महत्व बताते हुए पितृ दोष और राहु-केतु दोष से मुक्ति के लिए कुछ विशेष उपाय भी बताए गए हैं। इन उपायों के करने से हर दोष से मुक्ति मिलती है और कई समस्याएं दूर हो जाती हैं।
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