उमरिया जिले के बिरसिंहपुर पाली क्षेत्र में इंडियन गैस एजेंसी के पीछे कीमती पेड़ों की अवैध कटाई का मामला सामने आया है। यह घटना न केवल पर्यावरण के प्रति गंभीर अपराध है, बल्कि सरकारी विभागों की कार्यशैली और जवाबदेही पर भी बड़ा सवाल खड़ा करती है। बताया जा रहा है कि पेड़ उस स्थान पर काटे गए हैं जहां टीबीसीएल कंपनी के द्वारा ओवरब्रिज का निर्माण कार्य कराया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि पेड़ काटे जाने में कंपनी की भूमिका हो सकती है, लेकिन कोई भी अधिकारी या विभाग साफ तौर पर जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है।
सबने झाड़ा पल्ला
इस घटना को लेकर जब हल्का पटवारी राजेश प्रजापति से बात की गई तो उन्होंने कहा, “मुझसे केवल यह पूछा गया था कि यह ज़मीन किस विभाग के अंतर्गत आती है। पेड़ काटने की अनुमति किसी ने नहीं ली।” वहीं, पाली रेंजर सचिन कांत तिवारी ने खुद को मामले से अलग बताते हुए कहा कि यह जमीन वन विभाग के अंतर्गत नहीं आती, यह रेलवे की ज़मीन है और इसलिए पेड़ों की कटाई की सूचना राजस्व विभाग को दी जानी चाहिए थी। रेलवे विभाग के PWI सतीश साहू ने यह कहकर चौंकाया कि उन्हें इस मामले की जानकारी मीडिया से मिली है और वे अब इसकी पड़ताल करेंगे। वहीं, रेलवे जनसंपर्क अधिकारी अंबिकेश साहू ने भी स्थिति को और उलझाते हुए कहा कि रेलवे की ज़मीन पर भी पेड़ काटने के लिए फॉरेस्ट एवं अन्य संबंधित विभागों की अनुमति लेना आवश्यक होता है।
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कंपनी बोली– “जब पहुंचे तो पेड़ पहले से कटे हुए थे”
टीबीसीएल कंपनी के सीनियर स्ट्रक्चर सुपरवाइजर अर्जुन सिंह सेंगर ने कहा कि जब उनकी टीम सुबह आई, तब पेड़ पहले से कटे हुए पड़े थे। यह बयान न केवल अस्वाभाविक लगता है, बल्कि यह संदेह भी पैदा करता है कि कहीं इस मामले को जानबूझकर दबाने की कोशिश तो नहीं हो रही?
वायरल हो रहा 14 सेकंड का वीडियो
इस बीच, पेड़ काटने का 14 सेकंड का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें एक व्यक्ति पेड़ को काटते हुए दिख रहा है। हालांकि वीडियो में व्यक्ति की पहचान स्पष्ट नहीं हो पा रही है कि वह किस विभाग या कंपनी से जुड़ा है, लेकिन यह घटना को और भी गंभीर बना देती है।
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पर्यावरण पर सीधा हमला
एक ओर शासन द्वारा करोड़ों रुपये खर्च कर पौधरोपण अभियान चलाए जाते हैं। वहीं दूसरी ओर वर्षों पुराने हरे-भरे पेड़ रातों-रात काट दिए जाते हैं और कोई पूछने वाला नहीं है। यह न केवल कानून की धज्जियां उड़ाना है, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन के साथ क्रूर मज़ाक है।
विभागों की चुप्पी सवालों के घेरे में
हर विभाग एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर खुद को बचाने की कोशिश कर रहा है। न राजस्व विभाग, न वन विभाग, न ही रेलवे प्रशासन कोई भी स्पष्ट रूप से यह स्वीकार नहीं कर रहा कि गलती किसकी है या कार्रवाई कौन करेगा।
प्रशासन की भूमिका और मांग
इस गंभीर मामले में जिलाप्रशासन को तत्काल प्रभाव से जांच बैठानी चाहिए। साथ ही वायरल वीडियो की तकनीकी जांच कर पेड़ काटने वाले व्यक्ति की पहचान की जानी चाहिए। यदि जिम्मेदार अधिकारियों और संबंधित कंपनी पर कार्रवाई नहीं होती, तो यह अन्य निर्माण कार्यों के लिए भी एक खतरनाक मिसाल बन जाएगी। यह केवल पेड़ों की कटाई नहीं, बल्कि एक सामूहिक प्रशासनिक विफलता और पर्यावरणीय अपराध है। यदि अब भी आंखें बंद रखी गईं, तो आने वाली पीढ़ियों को न केवल हरियाली बल्कि स्वच्छ वायु और जलवायु संतुलन से भी हाथ धोना पड़ सकता है।