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VIDEO: Raebareli: लोकतंत्र की आवाज को जिंदा रखने के लिए किया संघर्ष, इमरजेंसी के दिनों का हरिशंकर पांडेय का अनुभव
देश के लोकतांत्रिक इतिहास में 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी घोषित कर दी थी। यह वह दौर था, जब संविधान द्वारा प्रदत्त नागरिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगा दिया गया।
आपातकाल के अनुभव साझा करते हुए लालगंज कस्बे के चमनगंज मोहल्ला निवासी हरिशंकर पांडेय ने बताया कि किस तरह उन्होंने उस समय सत्य और लोकतंत्र की आवाज को जिंदा रखने के लिए संघर्ष किया। हरिशंकर पांडेय बताते हैं कि इमरजेंसी लागू होते ही पूरे देश में राजनीतिक और सामाजिक वातावरण में घुटन सी फैल गई थी।
अखबारों पर सेंसरशिप लगा दी गई थी, और सरकार की आलोचना करने वाली किसी भी खबर या जानकारी को दबा दिया जाता था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वे लोगों को सच्चाई से अवगत कराने के लिए गुपचुप तरीके से समाचार पत्र वितरित करते रहे। कभी साइकिल तो कभी मोटरसाइकिल से गांव-गांव जाकर वे जागरूकता का बीड़ा उठाए रहे।
उन्होंने बताया कि जब उन्हें पता चला कि सरकार ने उनके खिलाफ वारंट जारी किया है तो उन्होंने रायबरेली छोड़कर निहस्था गांव में ट्रेन पकड़कर चुपचाप भोपाल की ओर रुख किया। जहां उनके पिता का कारोबार था। भोपाल पहुंचने के बाद भी उन्होंने अपना अभियान नहीं रोका और वहां के साथियों के साथ मिलकर इमरजेंसी के विरोध में आंदोलन में हिस्सा लिया। हालांकि कुछ समय बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और भोपाल की जिला जेल में डाल दिया गया। वहां उन्होंने अनेक कठिनाइयों का सामना किया और शारीरिक यातनाएं भी झेलीं।
हरिशंकर पांडेय याद करते हुए कहते हैं कि यह सब उस समय शुरू हुआ जब 1971 के लोकसभा चुनाव में राजनारायण ने इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। चुनाव में हार के बाद राजनारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इंदिरा गांधी पर चुनाव में अनियमितताओं का आरोप लगाया। 12 जून 1975 को कोर्ट ने इंदिरा गांधी को दोषी ठहराया और उन्हें चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित कर दिया। उन्हें इसके बाद इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की और साथ ही संसद में कानून संशोधन कर अपने पक्ष में माहौल बनवाया।
इन घटनाओं के विरोध में देशभर में आंदोलन तेज हो गया। दिल्ली से लेकर गांव-गांव तक लोकतंत्र की रक्षा के लिए लोग सड़कों पर उतर आए। सरकार ने डीआईआर और मीसा जैसे कड़े कानूनों के तहत करीब एक लाख से अधिक लोगों को जेल में डाल दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया और रायबरेली के कई स्वयंसेवकों जिनमें गिरीश नारायण पांडेय, राजकिशोर सिंह रज्जा, मान भाई वकील, राधा तिवारी, राम वरदान सिंह, लल्लू सिंह, झग्गड़ सिंह सहित अनेक कार्यकर्ताओं को लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा।
हरिशंकर पांडेय भावुक होते हुए कहते हैं कि इमरजेंसी के दौरान जेल गए कई लोग अब इस दुनिया में नहीं रहे। वह मानते हैं कि लोकतंत्र की रक्षा में उन्होंने जो भूमिका निभाई, वह आज भी उनके जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है।
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