मेरा टेसू यहीं अड़ा, खाने को मांगे दही-बड़ा, दही-बड़ा बहुतेरा, खाने को मुंह टेढ़ा। बचपन की यादों में शुमार टेसू-झांझी उत्सव की यह पंक्तियां अब विलुप्त होने लगी हैं। दशहरा से कार्तिक पूर्णिमा तक चलने वाले इस उत्सव से नए पीढ़ी के बच्चे अनजान हैं। महाभारत कालीन टेसू और झांझी का यह उत्सव ब्रज से लेकर बुंदेलखंड तक में खासा लोकप्रिय रहा है। एक दशक पहले हर साल जब शहर की गलियों में जब छोटे बच्चे और बच्चियां टेसू-झांझी लेकर घर-घर निकलते थे, गाना गाकर चंदा मांगते थे तो कोई एक परिवार झांझी के लिए जनाती और दूसरा परिवार टेसू की तरफ से बराती होता था। कुछ इलाकों में शरद पूर्णिमा के दिन बड़े स्तर पर आयोजन होते थे। झांझी की मोहल्ला स्तर पर शोभायात्रा भी निकलती थी तो वहीं दशहरा पर रावण दहन के साथ ही बच्चे टेसू लेकर द्वार-द्वार टेसू के गीतों के साथ नेग मांगते हैं, वहीं लड़कियों की टोली घर के आसपास झांझी के साथ नेग मांगने निकलती थी।
Dussehra 2021: ‘मेरा टेसू यहीं अड़ा, खाने को मांगे दही बड़ा' विलुप्त हो रही बच्चों के खेल की अनोखी परंपरा, दशहरा से कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है उत्सव
एक लोककथा के अनुसार भीम के नाती बर्बरीक (टेसू) को महाभारत के युद्ध में आते समय झांझी से प्रेम हो गया था। बर्बरीक ने युद्ध से लौटकर झांझी से विवाह करने का वचन दिया। उन्होंने अपनी मां को भी वचन दिया था कि वे हारने वाले पक्ष की तरफ से युद्ध करेंगे और वे कौरवों की ओर आ गए। श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उनका सिर काट दिया। वरदान के चलते सिर कटने के बाद भी वह जीवित रहे। युद्ध के बाद मां ने विवाह के लिए मना कर दिया। इस पर बर्बरीक ने जलसमाधि ले ली। झांझी उसी नदी किनारे इंतजार करती रहीं लेकिन वह लौट कर नहीं आए। यह प्रेम कहानी अधूरी रह गई।
मान्यता
मन:कामेश्वर मंदिर के महंत योगेशपुरी ने बताया कि मान्यता के अनुसार अगर किसी लड़के की शादी में अड़चन आ रही है तो तीन साल झांझी का विवाह कराए और अगर लड़की की शादी में दिक्कत आ रही है तो वह टेसू का विवाह कराने का संकल्प ले।
गोकुलपुरा में लगता था मेला
टेसू-झांझी का आगरा से दशकों पुराना नाता है। गली-मोहल्ले में टेसू की बारात निकलती थी। गोकुलपुरा व अन्य स्थानों पर भी छोटे मेले लगते थे लेकिन परंपरा विलुप्त होने के कारण अब मेले नहीं लग रहे है।
- गोपी गुरु, महंत प्राचीन हनुमान मंदिर, लंगड़े की चौकी
टेसू और झांझी का इतिहास बहुत पुराना है। अच्छी तरह से याद है कि बचपन में अपने मोहल्ले से चंदा एकत्रित करते थे। लड़के टेसू और लड़कियां झांझी लेकर चलती थीं। सब मिल कर गाना गाते थे। दीपक भी प्रज्जवलित करते थे।
- विश्वनाथ जुनेजा, सिकंदरा
हर बच्चे की अलग जिम्मेदारी
हर बच्चे की अलग जिम्मेदारी होती थी। किसी को दीपक के तेल, लौ का इंतजाम करना होता था तो किसी के पास चंदा लाने की। घर के पास के मंदिर की सजावट सब मिल कर करते थे। मोहल्ले के बड़ों का भी साथ होता था।
- देवेश चतुर्वेदी, बल्केश्वर
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