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भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में भक्तों के जयघोष से काशी रहती थी भक्तिमय, कोरोना के खलल ने किया मायूस
अमर उजाला नेटवर्क, वाराणसी
Published by: गीतार्जुन गौतम
Updated Wed, 24 Jun 2020 12:06 AM IST
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भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा
- फोटो : अमर उजाला
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कोरोना वायरस ने जीवन को काफी बदल दिया है। ये बदलाव हमारे जीवन जीने के तौर-तरीके में आए हैं। इसके साथ ही अब भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचने लगे हैं। संक्रमण न फैले इसके लिए प्रशासन सामूहिक आयोजन या ज्यादा भीड़ इकट्ठा नहीं होने दे रहा है। धर्मनगरी काशी तो एक ऐसा शहर है, जहां हर दिन धार्मिक आयोजन होते रहते हैं। लेकिन कोरोना की वजह से अब सब बंद पड़े हैं। भगवान जगन्नाथ यात्रा की भी आज नहीं निकली है, जिससे श्रद्धालुओं में मायूसी छाई है।
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जगन्नाथ रथयात्रा
- फोटो : अमर उजाला
पुरी में जगन्नाथ की रथयात्रा निकालने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इजाजत दे दी थी, लेकिन वाराणसी में जिला प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी है। जिससे तीन दिवसीय रथयात्रा का महोत्सव रुक गया है। ऐसा पिछले 218 सालों में हुआ कि धर्मनगरी काशी में भगवान जगन्नाथ भ्रमण पर नहीं निकले। पखवारे भर अस्वस्थ रहने के बाद स्वस्थ होकर भी भगवान मंदिर परिसर में ही विराजमान हैं। ट्रस्ट श्री जगन्नाथ जी के अध्यक्ष दीपक शापुरी ने बताया कि कोरोना संक्रमण को देखते हुए भगवान का नगर भ्रमण और रथयात्रा मेले को स्थगित किया गया है।
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सवा दो साल पहले काशी में हुई थी मंदिर की स्थापना :
अध्यक्ष दीपक शापुरी ने बताया कि 1780 में पुरी के जगन्नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी व प्रबंधक पं. नित्यानंद काशी चले आए। आराध्य देव जगन्नाथ जी की प्रेरणा से पवित्र असि क्षेत्र में पुरी की ही छवि वाला काष्ठ विग्रह स्थापित किया।
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परंपरा का ख्याल आया तो उनके आग्रह पर पंडित परिवार ने पुरी की ही परंपरा के अनुसार भव्य देवोपम रथ का निर्माण करा कर काशी में तीन दिवसीय रथयात्रा मेले का रंग जमाया। सन 1802 से काशी में रथयात्रा मेले का आयोजन निरंतर किया जा रहा है। यह नियमित परंपरा 218 सालों से चली आ रही थी।
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कुछ ऐसा होता है आयोजन :
वाराणसी में रथयात्रा पर काफी भीड़ रहती है। इस दिन पुराधिपति की नगरी काशी, भगवान जगन्नाथ की पुरी नगरी बन जाती है। भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भइया बलभद्र सुबह में रथ पर सवार होकर काशी वासियों को दर्शन देने निकलते हैं। अष्टकोणीय रथ पर भगवान जगन्नाथ कुटुंब के साथ भक्तों को दर्शन देते हैं। पट खुलने से पहले ही भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। भोर में दर्शन करने आए भक्तों में हाथों में तुलसीदल के साथ ही विविध प्रकार के सुगंधित पुष्पों की माला भी होती है। गुरुबाग से महमूरगंज के बीच का इलाका मेला क्षेत्र में तब्दील हो जाता है।
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