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पुण्यतिथि विशेष: काशी की गुप्त यात्रा पर कई बार आए थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस, आज भी रहस्य है उनकी मौत

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, वाराणसी Published by: उत्पल कांत Updated Thu, 18 Aug 2022 02:14 PM IST
सार

भारत को आजाद कराने के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा दिया था। बनारस से भी नेताजी का गहरा नाता था और वह कई बार काशी की गुप्त यात्रा पर आए थे। 

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Netaji Subhash Chandra Bose punyatithi he visit many times on secret visit to Kashi
नेताजी सुभाष चंद्र बोस - फोटो : फाइल
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नेताजी का नारा था इत्तहाद, एकता, ऐतमाद, विश्वास और बलिदान...। भारत को आजाद कराने के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा दिया था। बनारस से भी नेताजी का गहरा नाता था और वह कई बार काशी की गुप्त यात्रा पर आए थे। दावा है कि अंतिम समय के कुछ दिन उन्होंने काशी में अज्ञातवास भी किया था। आज उनकी पुण्यतिथि मनाई जा रही है। 
नेताजी की मौसी के प्रपौत्र वीरभद्र मित्रा ने बताया कि काशी के लिए उनके मन में कई सारी योजनाएं थीं। उनके मौसा-मौसी बंगाली ड्योढ़ी में ही रहते थे।

नेताजी दो बार बंगाली ड्योढ़ी आए थे और बेहद गोपनीय तरीके से यहां निवास किया। उनकी बहन का विवाह गोरखपुर के राय परिवार में हुआ था और उनके बहनोई चिकित्सक थे। बीएचयू के भारत कला भवन में नेताजी से जुड़ी कई स्मृतियां आज भी संग्रहित हैं। आजाद हिंद फौज का रुपया, मालवीय जी को नेताजी द्वारा लिखा हुआ पत्र संग्रहित कर रखा गया है।
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Netaji Subhash Chandra Bose punyatithi he visit many times on secret visit to Kashi
वाराणसी के लमही में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का मंदिर। - फोटो : अमर उजाला
वीरभद्र मित्रा ने बताया कि नेताजी ने गांधीजी को राष्ट्रपिता का संबोधन दिया था। वह बहुत दूरदर्शी थी थे एक पत्र में जिक्र मिलता है कि नेताजी ने बापू से कहा था कि आप बंटवारे की बात मत मानिए नहीं तो आने वाले समय में इसी आधार पर सिखिस्तान, गढ़वालिस्तान की मांग उठने लगेगी।
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस - फोटो : फाइल
कैथी निवासी सेवानिवृत्त डिप्टी सेंट्रल इंटेलिजेंस अधिकारी श्यामाचरण पांडेय ने पिछले साल ही प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर दावा किया था कि कैथी में रहने वाले शारदानंद ब्रह्मचारी ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे। श्यामाचरण ने बताया कि 02 दिसंबर 1951 को शारदानंद ब्रह्चारी कैथी आए थे। इस दौरान पिता जी स्व. कृष्णकांत पांडेय से उनकी अकस्मात भेंट हुई और वह उनकी सेवा में अंतिम दिनों में 1977 तक समर्पित रहे। 
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस - फोटो : फाइल
नेताजी शारदानंद नाम से 1977 तक अपनी पहचान को छिपाकर जीवित रहे। उनके हस्तलेख, पत्रों की प्रतियां व जीवित रहने के प्रमाण जस्टिस खोसला और जस्टिस मुखर्जी जांच आयोग के संज्ञान में डॉ. सुरेश चंद्र पाध्ये ने लाया था। हस्तलेख विशेषज्ञों की रिपोर्ट कहती है कि नेताजी और शारदानंद द्वारा लिखे गए पत्रों की लिखावट एक ही व्यक्ति की है।
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस - फोटो : फाइल
शारदानंद ब्रह्मचारी अपने गंगतोली, ओखी मठ प्रवास में डॉ. पाध्ये से चर्चा के दौरान कहा थे कि मैं गंगोत्री से यात्रा करते हुए टेहरी आया, एक पेड़ की छाया में आराम कर रहा था। एक व्यक्ति से समाचार पत्र लेकर पढ़ने लगा। शरत चंद्र बोस के दुखद निधन से मुझे धक्का लगा। मेरी दुनिया उजड़ गई। नेता जी के बड़े भाई शरत चंद्र बोस की मृत्यु 20 फरवरी 950 को हुई थी। 
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