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खटारा बसों का सफर: खिड़की-दरवाजे टूटे, टायर भी घिसे, फिर भी सड़कों पर दौड़ रहीं बसें,कई में स्टेपनी तक नहीं
अमर उजाला नेटवर्क, अलीगढ़
Published by: चमन शर्मा
Updated Mon, 24 Nov 2025 04:13 PM IST
सार
एक्सपर्ट के अनुसार बसों के टायर 65 से 70 हजार किलोमीटर चलने के बाद खत्म हो जाते हैं। इसके बाद टायरों को सुरक्षा की दृष्टि से बदला जाना चाहिए। यूपी रोडवेज की कई बसों के टायरों का हाल भी बदलने लायक है, पर चल रही हैं।
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सारसौल बस स्टैंड पर रोडवेज बस का टूटा शीशा, स्टेयरिंग के पास खुले तार
- फोटो : संवाद
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विस्तार
मरम्मत और देखरेख के अभाव में रोडवेज की बसें खटारा होती जा रही हैं। बसों में फॉग लाइट नहीं हैं। खिड़कियों के शीशे और दरवाजे टूटे हुए हैं। टायर भी घिस चुके हैं। उसके बाद भी इन्हें सड़कों पर दौड़ाया जा रहा है। यात्रियों को मजबूरन इन बसों से सफर करना पड़ रहा है।
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23 नवंबर को अमर उजाला की टीम ने अलीगढ़ के सारसाैल व मसूदाबाद बस स्टैंड पर खड़ी बसों का जायजा लिया तो यही स्थिति सामने आई। अधिकतर बसों के टायरों के घिस जाने के बाद भी उन्हें बार-बार इस्तेमाल किया जा रहा है, जो सड़क हादसे का बड़ा कारण बन रहे हैं। कई बसों में स्टेपनी तक नहीं हैं, जिससे रास्ते में टायर फटने या पंक्चर हो जाने की स्थिति में उन्हें बदला जा सके।
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फोरमैन ने बताया कि सारसौल स्थित वर्कशाप में 20 से अधिक बसें टायर व स्पेयर पार्ट्स के अभाव में खड़ी हैं। इन बसों की मरम्मत होनी है। 50 से अधिक बसें ऐसी हैं जो सड़कों पर दौड़ रही हैं, लेकिन उनकी बहुत अच्छी स्थिति नहीं है। एक्सपर्ट के अनुसार बसों के टायर 65 से 70 हजार किलोमीटर चलने के बाद खत्म हो जाते हैं। इसके बाद टायरों को सुरक्षा की दृष्टि से बदला जाना चाहिए।
कोहरे से बचाव के लिए बसों की खिड़की, दरवाजे आदि ठीक करने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। बसों की मरम्मत व घिसे टायरों को बदलने के लिए मुख्यालय से बजट मांगा गया है।- सत्येंद्र वर्मा, क्षेत्रीय प्रबंधक, रोडवेज