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Gyanvapi Case: श्रृंगार गौरी पूजा अधिकार को लेकर मसाजिद कमेटी की याचिका खारिज, नियमित पूजा का चलता रहेगा केस

अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज Published by: विनोद सिंह Updated Wed, 31 May 2023 04:36 PM IST
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सार

Gyanvapi Case: वाराणसी, ज्ञानवापी  स्थित श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा अधिकार  मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंजुमन इंतजामिया कमेटी की याचिका खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति जे जे मुनीर ने अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी वाराणसी की तरफ से दाखिल पुनरीक्षण याचिका खारिज कर  दिया है।

Allahabad High Court: Hearing in case of regular worship of Shringar Gauri
ज्ञानवापी परिसर। - फोटो : social media
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी स्थित ज्ञानवापी परिसर में शृंगार गौरी की नियमित पूजा का अधिकार दिए जाने की मांग संबंधी याचिका की सुनवाई पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया है। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की यह मांग खारिज होने के बाद वाराणसी जिला जज की अदालत में मामले की सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है। जिला अदालत में राखी सिंह व नौ अन्य महिलाओं ने सिविल वाद दाखिल कर रखा है।

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यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी वाराणसी की तरफ से दाखिल पुनरीक्षण याचिका खारिज करते हुए दिया है। इसके पहले कमेटी की ओर से नियमित पूजा का अधिकार दिए जाने संबंधी जिला जज वाराणसी की अदालत में दाखिल अर्जी पर सुनवाई रोकने की मांग की गई थी। कमेटी ने वाद की पोषणीयता पर आपत्ति करते हुए कहा था कि पूजास्थल अधिनियम-1991 के उपबंधों के तहत जिला अदालत को वाद सुनने का अधिकार नहीं है। जिला अदालत ने दलीलों को बेदम मानते हुए याचिका खारिज कर दी थी।
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दोनों पक्षो की ओर से रखी गई दलील

कमेटी ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। तर्क दिया कि उपासना स्थल अधिनियम से नियमित पूजा प्रतिबंधित है, क्योंकि पूजा करने से स्थल की धार्मिक प्रकृति से छेड़छाड़ होगी, जो कि गैरकानूनी है। लिहाजा, नियमित पूजा की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। दलील दी कि यह सिविल वाद अब मियाद बाधित भी है। कमेटी की ओर से कहा गया कि चालाकी से पूजा के अधिकार की मांग में दाखिल सिविल वाद से विपक्षी के अधिकारों में हस्तक्षेप करने की कोशिश की गई है। यह पूजास्थल अधिनियम-1991 का उल्लंघन होगा।

कमेटी ने यह भी दलील दी कि मंदिर पक्ष यह स्पष्ट नहीं कर पाया है कि पूजा 1990 में रोकी गई या 1993 में। अगर इन दोनों ही तिथियों में नियमित पूजा रोकी गई तो यह लिमिटेशन एक्ट ही नहीं, पूजास्थल अधिनियम से भी प्रतिबंधित है। क्योंकि, 15 अगस्त 1947 से ज्ञानवापी मस्जिद का स्टेट्स ही बरकरार रहना चाहिए। स्थल की धार्मिक स्थिति में बदलाव नहीं किया जा सकता।

यह विवाद काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट अधिनियम के अंतर्गत भी नहीं आता है, क्योंकि मस्जिद वक्फ बोर्ड की संपत्ति है। वक्फ बोर्ड की संपत्ति के विवाद की सुनवाई करने का अधिकार वक्फ अधिकरण को है, न कि सिविल कोर्ट को। हाईकोर्ट ने लगातार सुनवाई के बाद 23 दिसंबर 2022 को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। बुधवार को यह फैसला सुनाया गया।

जैन ने दीन मोहम्मद केस का दिया हवाला

मंदिर पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन, सौरभ तिवारी व प्रभाष पांडेय ने कहा कि पौराणिक साक्ष्यों में ही नहीं, बल्कि 15 अगस्त 1947 से पहले से भी शृंगार गौरी, हनुमान व कृति वासेश्वर की पूजा होती आ रही है। इसलिए, 1991 का पूजास्थल अधिनियम इस मामले में लागू नहीं होगा। मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद उस जमीन का स्वामित्व मूर्ति में निहित हो जाता है। मंदिर ध्वस्त होने के बाद भी अप्रत्यक्ष मूर्ति का अस्तित्व बना रहता है।

अधिवक्ता जैन की ओर से दलील दी गई कि औरंगजेब ने स्वयंभू विश्वेश्वर नाथ मंदिर तोड़ा और मंदिर की दीवार पर मस्जिद का आकार दे दिया। इस्लामिक कानून के तहत इसे मस्जिद नहीं माना जा सकता। वैसे भी, विवादित स्थल पर नमाज कबूल नहीं होती। जैन ने 1937 के दीन मोहम्मद केस का हवाला देते हुए कहा कि इस मामले में केवल वादी को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई है, समूचे मुस्लिम समाज को नहीं।

मंदिर पक्ष की ओर से कहा गया कि जहां आज तीन गुंबद हैं, वहीं पर शृंगार गौरी, हनुमान व कृतिवास मंदिर था। एक नक्शा भी पेश किया गया। कहा गया कि किसी इस्लामिक इतिहासकार ने ज्ञानवापी मस्जिद का जिक्र नहीं किया है। आलमगीर मस्जिद विवादित स्थल से तीन किलोमीटर दूर है। उस काल में कई मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई गई थीं।

जैन ने कहा कि काशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट पहले का है। समवर्ती सूची के कारण पूजास्थल अधिनियम पर प्रभावी होगा। इस कानून के तहत ज्ञानवापी परिसर की भूमि विश्वनाथ मंदिर की है। मस्जिद का किसी भूमि पर स्वामित्व नहीं है। मंदिर की संपत्ति या हिंदू-मुस्लिम का विवाद वक्फ अधिकरण को सुनने का अधिकार नहीं है। वह मुस्लिमों के बीच ही विवाद सुन सकता है। हवाला दिया कि स्कंद पुराण में पंचकोसी परिक्रमा मार्ग में आने वाले 11 मंदिरों का उल्लेख है। उनमें से कुछ पर मस्जिद बनी हुई है।

ज्ञानवापी कूप में स्नान कर शृंगार गौरी के पूजन का विधान है। विवादित ढांचे की तस्वीर पेश कर कहा कि साफ दिखाई दे रहा है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद का आकार दिया गया है। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 10 नियम 11 की अर्जी खारिज होने पर कुछ भी कहने को जरूरी नहीं माना। हालांकि, कोर्ट ने जानना चाहा था कि 1993 में पूजा किसके आदेश व किस कारण रोकी गई।

फैसले से वादी पक्ष खुश

कोर्ट के फैसले पर वादी पक्ष ने खुशी जताई है। वादीगण के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि इस फैसले से जिला जज की अदालत में सुनवाई आगे बढ़ेगी।
सुप्रीम कोर्ट जाएगी कमेटी

इंतजामिया कमेटी इस फैसले से नाखुश है। कमेटी के अधिवक्ता एसएफए नकवी ने कहा कि वे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।
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