High Court : केंद्रीय विवि का घटक होने मात्र से गोविंद बल्लभ पंत संस्थान के कर्मचारी पेंशन के हकदार नहीं
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी संस्थान के केंद्रीय विश्वविद्यालय का घटक बनने मात्र से उसके कर्मी केंद्र सरकार के कर्मचारियों के समान पेंशन लाभों के हकदार नहीं हो जाते।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी संस्थान के केंद्रीय विश्वविद्यालय का घटक बनने मात्र से उसके कर्मी केंद्र सरकार के कर्मचारियों के समान पेंशन लाभों के हकदार नहीं हो जाते। यह टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने गोविंद बल्लभ पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट प्रयागराज के कर्मचारियों की पेंशन की मांग में दायर याचिका खारिज कर दी।
यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने डॉ.एसके पंत व अन्य की याचिका पर दिया। याचियों को इंडियन सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट-1860 के तहत पंजीकृत स्वायत्त संस्थान गोविंद बल्लभ पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट में विभिन्न पदों पर नियुक्त किया गया था। याचियों का कहना था कि 2005 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने के बाद उक्त संस्थान उसका एक घटक बन गया। ऐसे में उन्हें भी पेंशन सहित केंद्रीय विश्वविद्यालय के कर्मचारियों को प्राप्त होने वाले लाभ मिलने चाहिए। इसके लिए उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
कोर्ट ने पक्षों को सुनने के बाद पाया कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय का घटक बनने के बावजूद गोविंद बल्लभ पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट अपनी मूल प्रकृति में एक स्वायत्त संस्था ही बना हुआ है। इसके वित्त का प्रबंधन केंद्र सरकार की ओर से स्वतंत्र रूप से किया जाता है। यूजीसी पहले ही इस आधार पर याचियों के दावे को खारिज कर चुका था।
न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य बनाम भगवान एवं अन्य (2022) का हवाला देते हुए कहा कि स्वायत्त निकायों के कर्मचारी केवल केंद्र से फंडिंग प्राप्त करने या सरकारी सेवा नियमों को अपनाने के आधार पर सरकारी कर्मचारियों के समान पेंशन या अन्य लाभों का दावा नहीं कर सकते। इसी के साथ कोर्ट ने पेंशन की मांग में दायर याचिका खारिज कर दी।