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In Sonipat, Amar Ujala organized a dialogue program on the occasion of Hindi Day at the Government Women's College in Sector-12.
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सोनीपत में अमर उजाला ने सेक्टर-12 स्थित राजकीय महिला महाविद्यालय में हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में संवाद कार्यक्रम का आयोजन
पद्मश्री सम्मान से अलंकृत साहित्यकार एवं लेखक डॉ. संतराम देशवाल ने कहा कि देशभर में 60 करोड़ लोग हिंदी भाषा को समझते, पढ़ते-लिखते हैं। हमारे अंदर से यह गलत धारणा डाली दी गई है कि विद्यार्थी हिंदी भाषा पर ध्यान नहीं देते, ऐसा कुछ नहीं है। आज विद्यार्थियों को केवल समझाने वाला नहीं है। हिंदी हमारे भाव, संस्कारों व संवेदनाओं की भाषा है। इसके माध्यम से ही हम अपना संप्रेषण अच्छा कर सकते हैं। आगे हिंदी का ही भविष्य है।
वह मुख्य अतिथि के रूप में शनिवार को सेक्टर-12 स्थित राजकीय महिला महाविद्यालय में हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में अमर उजाला की ओर से आयोजित संवाद कार्यक्रम में बोल रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य डॉ. नरेश कुमार ने की। कार्यक्रम में हिंदी विभाग की अध्यक्ष डॉ. सविता, हिंदी भाषा प्रचार के लिए प्रयासरत प्राध्यापक डॉ. सुनील पंवार, डॉ. राजेश ढाका, डॉ. राजेश भारद्वाज, डॉ. मीनाक्षी, डॉ. वंदना, डॉ. विक्रम गहलावत, डॉ. रेखा रहेजा, डॉ. सतीश मलिक, डॉ. अनीता सहित 80 से ज्यादा छात्राओं ने भाग लिया।
मुख्य अतिथि डॉ. संतराम देशवाल ने कहा कि हमारी धारणा यह नहीं है कि हम केवल हिंदी को ही पढ़े या पढ़ाएं। हम दूसरी भाषाओं का भी अध्ययन करें। हमें अंग्रेजी या अन्य भारतीय भाषाओं से कोई द्वेष नहीं है। हमें इन भाषाओं का भी सम्मान करना चाहिए। मगर हीन भावना का परित्याग करके हमें प्रतिदिन हिंदी दिवस मनाना चाहिए। हिंदी में हस्ताक्षर सहित ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करें। हिंदी विकसित है और विकसित रहेगी। विश्व स्तर पर मंदारिन के बाद आज तीसरे स्थान पर हिंदी है। फिर भी विश्व के 180 देशों में हिंदी पढ़ी-लिखी जा रही है। हिंदी के प्रति जो भ्रम, हीन व द्वेष भावना है, उसका परित्याग करके हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम हिंदी को अपनाकर इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाकर ही दम लेंगे।
प्राचार्य डॉ. नरेश कुमार ने कहा कि हिंदी भले ही हमारी राजभाषा हो, लेकिन आज भी हिंदी को वह स्थान नहीं मिल सका है जो उसे मिलना चाहिए था। युवाओं को आज बताना होगा कि किस तरह हिंदी उनके भविष्य को उज्जवल बनाने में सहयोगी साबित हो सकती है। अंग्रेजी से ज्यादा युवाओं को हिंदी को अपने जीवन में अपनाना चाहिए। हिंदी को जब तक हम अपनी मातृभाषा समझकर अपनी मां की तरह सम्मान नहीं करेंगे, उसे अपनी जिंदगी में शामिल नहीं करेंगे, तब तक हिंदी को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता है।
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