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क्या इस्राइल जो करना चाहता था वो पूरा हुआ?
वीडियो डेस्क अमर उजाला डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Tue, 24 Jun 2025 04:05 PM IST
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पश्चिम एशिया में बीते 12 दिनों से जारी तबाही और मौत के सिलसिले को मंगलवार को आखिरकार विराम मिल गया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से प्रस्तावित युद्ध विराम योजना को ईरान और इस्राइल दोनों ने स्वीकार कर लिया है। इस एलान के साथ ही दुनिया ने राहत की सांस ली, लेकिन युद्ध विराम के इस समझौते के पीछे की घटनाएं और रणनीति कई स्तरों पर चौंकाती हैं।
इस पूरी जंग की शुरुआत हुई थी ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमलों से, जिसके जवाब में ईरान ने कतर में स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डे को सीमित मिसाइल हमलों से निशाना बनाया। इसी के तुरंत बाद ट्रंप ने युद्ध विराम प्रस्ताव का एलान किया, जिससे कूटनीतिक स्तर पर हलचल तेज हो गई।
लेकिन ट्रंप के बयान के बाद भी हालात बिगड़ते रहे। तेहरान ने एक आखिरी मिसाइल हमला इस्राइल पर किया, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। इसके जवाब में इस्राइल ने भी ईरान के कई सैन्य ठिकानों और सरकारी इमारतों को निशाना बनाकर ताबड़तोड़ हवाई हमले किए। इन घटनाओं ने संकट को और गहरा कर दिया, लेकिन अंततः दोनों पक्षों ने युद्धविराम के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने मंगलवार को पुष्टि की कि उनकी सरकार ट्रंप के प्रस्ताव के तहत युद्ध विराम को मानने को तैयार है। उन्होंने बताया कि सोमवार रात उन्होंने इस्राइल की सुरक्षा कैबिनेट को सूचित किया कि 12 दिनों के सैन्य अभियान में इस्राइल ने अपने सभी युद्ध लक्ष्य हासिल कर लिए हैं।
नेतन्याहू के अनुसार, इन लक्ष्यों में शामिल थे –
• ईरान के परमाणु कार्यक्रम को गंभीर क्षति पहुंचाना
• बैलिस्टिक मिसाइल क्षमता को नष्ट करना
• ईरान की सैन्य रणनीति को ध्वस्त करना
• तेहरान के हवाई क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित करना
प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कहा, “यह सिर्फ एक सैन्य सफलता नहीं, बल्कि राजनीतिक और कूटनीतिक सफलता भी है।”
युद्ध विराम की घोषणा के साथ ही नेतन्याहू ने एक स्पष्ट संदेश भी दिया। उन्होंने कहा कि अगर ईरान युद्ध विराम का उल्लंघन करता है, तो इस्राइल जोरदार जवाब देगा। उन्होंने अपने बयान में कहा, “हम शांति चाहते हैं, लेकिन कमजोरी नहीं दिखाएंगे। ईरान या उसका कोई सहयोगी अगर समझौते को तोड़ने की कोशिश करता है, तो हम तैयार हैं।”
इस पूरे घटनाक्रम में एक और बड़ी जीत अमेरिका और खासकर डोनाल्ड ट्रंप के खाते में गई है। उन्होंने जिस वक्त यह युद्ध विराम प्रस्ताव दिया, वह क्षण बेहद संवेदनशील था। ईरान ने जब अमेरिकी सैन्य अड्डे को निशाना बनाया, तब अमेरिका के पास जवाबी कार्रवाई का पूरा अधिकार था, लेकिन ट्रंप ने कूटनीति को प्राथमिकता दी।
ट्रंप ने अपने बयान में कहा, “हम युद्ध नहीं चाहते, हम स्थायित्व चाहते हैं। अगर ईरान और इस्राइल शांति के लिए तैयार हैं, तो अमेरिका पीछे नहीं हटेगा।” ट्रंप की यह पहल अमेरिका को एक बार फिर ‘शांति के अग्रदूत’ की भूमिका में खड़ा करती है, खासकर मध्य पूर्व में।
युद्धविराम के साथ ही अब नुकसान का आकलन शुरू हुआ है। बीते 12 दिनों में ईरान और इस्राइल के बीच हुई कार्रवाई में
• 200 से ज्यादा लोग मारे गए, जिनमें आम नागरिक भी शामिल हैं
• 400 से ज्यादा घायल, कई की हालत गंभीर
• तेहरान, हेरात, मशहद जैसे शहरों में बिजली संयंत्र और सैन्य ठिकानों को क्षति
• इस्राइल के कई सीमाई इलाके मिसाइल हमलों की चपेट में
• वैश्विक कच्चे तेल बाजार में तेज उथल-पुथल और अस्थिरता
अगला पड़ाव: क्या टिकेगा युद्ध विराम?
हालांकि युद्ध थम गया है, लेकिन तनाव पूरी तरह खत्म नहीं हुआ। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह युद्ध विराम अस्थायी भी हो सकता है, क्योंकि ईरान के कट्टरपंथी गुट इससे खुश नहीं हैं और इस्राइल भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक डॉ. रहमान करीमी कहते हैं, “अभी यह विराम है, समाधान नहीं। दोनों पक्षों में अविश्वास बना हुआ है।” संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और यूरोपीय संघ को अब इस विराम को स्थायी शांति में बदलने के लिए आगे आना होगा।
डोनाल्ड ट्रंप की पहल से ईरान और इस्राइल के बीच 12 दिन से जारी खूनी संघर्ष पर विराम लग गया है। लेकिन यह सिर्फ एक रणनीतिक विराम है, स्थायी शांति की दिशा में अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है। नेतन्याहू का ‘सभी लक्ष्यों के पूरे होने’ का दावा और ईरान की चुप्पी आने वाले दिनों में कई नई कहानियां बुन सकती है।
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