लद्दाख में छठी अनुसूची में शामिल करने और पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर चल रहा आंदोलन अचानक हिंसक हो गया। प्रदर्शनकारियों ने लेह स्थित भाजपा कार्यालय में आग लगा दी, जिसके बाद हालात काबू से बाहर हो गए और प्रशासन को अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगाना पड़ा। सरकार ने इस हिंसा के लिए जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को जिम्मेदार ठहराया और अगले ही दिन उनके एनजीओ का एफसीआरए लाइसेंस रद्द कर दिया। वहीं, लद्दाख के उप-राज्यपाल कविंद्र गुप्ता ने इसे सुनियोजित साजिश करार दिया।
हिंसा की जड़ें 2019 में जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन से जुड़ी हैं। अनुच्छेद 370 हटने के बाद लद्दाख को बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। इसके विरोध में तब से ही लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने और पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग उठती रही है। इसी क्रम में सोनम वांगचुक और लद्दाख एपेक्स बॉडी के कार्यकर्ता लंबे समय से धरने और भूख हड़ताल पर थे। दो कार्यकर्ताओं की हालत बिगड़ने पर बुधवार को लेह बंद का आह्वान किया गया। बड़ी संख्या में युवा सड़कों पर उतरे और पुलिस से झड़प के बाद स्थिति हिंसक हो गई।
इस आंदोलन के केंद्र में सोनम वांगचुक हैं, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा और पर्यावरण सुधारों के लिए पहचाना जाता है। उन्हें 2018 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार भी मिल चुका है। वांगचुक का कहना है कि उन्हें इस पूरे मामले में बलि का बकरा बनाया जा रहा है।
गौरतलब है कि संविधान की छठी अनुसूची वर्तमान में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम पर लागू है। इसके तहत आदिवासी क्षेत्रों के लिए स्वायत्त जिला परिषद का प्रावधान है, जो भूमि, वन और रीति-रिवाजों पर कानून बनाने का अधिकार देती है। इसे लद्दाख में लागू करने के लिए संविधान संशोधन अनिवार्य होगा।
हिंसा के बाद प्रशासन की सख्ती और आंदोलनकारियों का आक्रोश, दोनों ही संकेत देते हैं कि यह मुद्दा आने वाले समय में और गहराई पकड़ सकता है।