सीहोर जिले के लसूडिया परिहार गांव में दीपावली के दूसरे दिन एक अनोखा दृश्य देखने को मिलता है, जो आधुनिक विज्ञान को भी हैरान कर देता है। यहां पिछले सौ वर्षों से सांपों की अदालत नामक परंपरा निभाई जा रही है। इस परंपरा में सर्पदंश (सांप के काटने) से पीड़ित लोग अपने डसने का कारण जानने आते हैं। ग्रामीणों की मान्यता है कि नागदेवता पीड़ित के शरीर में प्रवेश कर बताते हैं कि उन्होंने क्यों काटा।
जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित हनुमानजी की मडिया में यह अदालत दीपावली के दूसरे दिन लगाई जाती है। ढोलक, मंजीरा और मटकी की लय पर जब विशेष मंत्र गाए जाते हैं, तो पीड़ितों में से कुछ लोगों के शरीर में नागदेवता की आत्मा प्रवेश कर जाती है। वे नाग की तरह लहराने लगते हैं और बताते हैं कि सांप ने क्यों डसा। किसी का घर तोड़ा गया, किसी को कुचल दिया गया या बिना कारण मारा गया। यही कारण नागदेवता स्वयं बताते हैं।
गांव के मन्नू गिरी महाराज बताते हैं कि उनके परिवार की तीन पीढ़ियां यह परंपरा निभा रही हैं। बाबा मंत्रोच्चार के साथ पीड़ित को मुक्त करते हैं और नागदेवता से वचन लिया जाता है कि वे दोबारा उस व्यक्ति को नहीं काटेंगे। यदि किसी को सांप काट ले, तो उसे तुरंत बाबा के पास लाया जाता है। यहां ‘भरनी’ नामक विशेष मंत्रों से उपचार किया जाता है और पीड़ित को राहत मिलती है।
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ग्रामीणों के अनुसार, इस परंपरा की शुरुआत संत मंगलदास महाराज ने की थी, जो चिन्नोटा से यहां आए थे। उन्होंने ही लोगों को ‘गुरु मंत्र’ देकर नागों की पेशी की साधना प्रारंभ की थी। आज भी मंदिर में उनकी समाधि मौजूद है और श्रद्धालु मानते हैं कि उन्हीं की कृपा से यह अनुष्ठान सफल होता है।
जहां दुनिया विज्ञान की ऊंचाइयों को छू रही है, वहीं लसूडिया परिहार गांव आस्था की गहराई को संजोए हुए है। यहां न कोई अस्पताल है, न डॉक्टर, लेकिन श्रद्धालुओं का विश्वास है कि जो भी सांप के काटे के बाद यहां आता है, वह बाबा के आशीर्वाद और मंत्रों से स्वस्थ होकर लौटता है।