राजस्थान में दलित वर्ग पर हो रहे अत्याचार और भेदभाव के मामलों को लेकर विपक्ष ने गंभीर चिंता जताई है। नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने जयपुर में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष किशोर मकवाना से मुलाकात की और प्रदेश की स्थिति से उन्हें अवगत कराया। इस दौरान उन्होंने एक ज्ञापन भी सौंपा, जिसमें दलितों की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उपेक्षा से जुड़े कई मुद्दे उठाए गए।
अब भी जारी भेदभाव और उत्पीड़न
टीकाराम जूली ने आयोग अध्यक्ष को बताया कि आज भी दलित और आदिवासी समुदाय को सामाजिक न्याय नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने कहा कि संविधान में समानता और स्वतंत्रता का अधिकार दिए जाने के बावजूद वास्तविकता यह है कि दलितों पर भेदभाव और अत्याचार जारी हैं।
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जूली ने मकवाना को दी गई जानकारी में बताया कि अनुसूचित जाति पर अत्याचार के मामले इसलिए बढ़ते दिख रहे हैं, क्योंकि इन वर्गों को पर्याप्त कानूनी संरक्षण होने के बावजूद ऐसे मामलों में आरोपियों को सजा के मामलों में लगातार गिरावट आती जा रही है। अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग में उत्पीड़न के मामलों में छुआछूत बरतने, दबंगों द्वारा इन वर्गों को डरा-धमकाकर उनको भूमि व भवन से बेदखल करने और बंधुआ मजदूरों के रूप में शोषण किए जाने के मामले रहते हैं। आज भी इन वर्गों की माहिलाओं का यौन उत्पीड़न, दलित दूल्हों को घोड़ी पर नहीं बैठने देने और उनके मांगलिक कार्यों पर बैंड आदि नहीं बजाने देने जैसी घटनाएं आज भी हो रही हैं। इससे ऐसा लगता है कि हम आज भी आदिम युग में जी रहे हैं।
चिंताजनक आंकड़े और रिपोर्ट
नेता प्रतिपक्ष ने बताया कि केंद्र सरकार की हालिया रिपोर्ट में दलितों पर अत्याचार को लेकर चिंताजनक तथ्य सामने आए हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार, यूपी के बाद राजस्थान और मध्यप्रदेश में दलित अत्याचार के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं। उन्होंने खुलासा किया कि जुलाई 2024 से जुलाई 2025 तक राजस्थान में एससी/एसटी एक्ट के तहत 8075 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 44.73 प्रतिशत मामले अब भी लंबित हैं।
प्रतिनिधित्व से भी वंचित
जूली ने आरोप लगाया कि प्रदेश सरकार दलित समाज को उचित प्रतिनिधित्व देने में विफल रही है। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति आयोग का गठन अब तक नहीं हुआ है, वहीं भर्ती परीक्षाओं और पदोन्नति में भी दलित वर्ग की उपेक्षा की गई है। उन्होंने हाल ही में हुई आईएएस पदोन्नति का जिक्र करते हुए कहा कि चुने गए चारों अधिकारी अगड़ी जाति से थे, जबकि दलित समाज को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया। इसके अलावा, मंत्रिमंडल के गठन में भी दलित विधायकों को पर्याप्त स्थान नहीं मिला।
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आयोग से हस्तक्षेप की मांग
टीकाराम जूली ने आयोग अध्यक्ष को ज्ञापन सौंपते हुए मांग की कि दलितों की स्थिति सुधारने के लिए आयोग राज्य सरकार को निर्देशित करे। उन्होंने कहा कि बजट आवंटन में भी अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम के अनुसार प्रावधान किए जाने चाहिए ताकि दलित वर्ग के कल्याण की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकें।