जोधपुर में ईद-उल-अजहा (बकरीद) का त्योहार एतराम और सौहार्द के साथ मनाया गया। कुर्बानी की रस्म के बाद लोगों ने एक-दूसरे को गले लगाकर ईद की मुबारकबाद दी। त्याग और बलिदान का पर्व पूरे शहर में शांतिपूर्वक संपन्न हुआ। जालोरी गेट स्थित ईदगाह में सुबह 8 बजे मुख्य नमाज अदा की गई। वहीं, चीरघर अंजुमन पार्क में मौलाना मंजूर आलम की इमामत में 7:45 बजे नमाज अदा की गई। इसके बाद लोगों ने अपने-अपने घरों में कुर्बानी की रस्म निभाई।
बकरीद के मौके पर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों जैसे बम्बा, उदयमंदिर, आसन, खेतानाड़ी, लखारा बाजार, मोती चौक, जालोरी गेट, प्रतापनगर, चीरघर और सूरसागर में खासा उत्साह देखने को मिला। चौखा बकरा मंडी सहित शहर के अन्य बाजारों में भी देर रात तक खरीदारी को लेकर भीड़ नजर आई।
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धर्मगुरुओं ने बताया कुर्बानी का महत्व
इमाम मोहम्मद हुसैन अशरफीने बताया कि कुर्बानी के मांस को तीन हिस्सों में बांटा जाता है – एक हिस्सा गरीबों में दान, दूसरा दोस्तों और रिश्तेदारों को और तीसरा हिस्सा परिवार के लिए रखा जाता है। यह परंपरा पैगंबर हज़रत इब्राहिम द्वारा अल्लाह के प्रति समर्पण दिखाने के प्रतीक स्वरूप निभाई जाती है, जब वे अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हुए थे।
सुरक्षा व्यवस्था रही चाक-चौबंद
ईद के मौके पर शहर में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए। जालोरी गेट चौराहे सहित शहर के प्रमुख इलाकों में पुलिस बल तैनात रहा। पुलिस ने ड्रोन की मदद से भी निगरानी की, ताकि त्योहार शांतिपूर्वक संपन्न हो सके।
ईद-उल-अजहा का धार्मिक महत्व
ईद-उल-अजहा इस्लाम धर्म के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है, जिसे ‘बलिदान का पर्व’ या ‘बकरीद’ भी कहा जाता है। यह पर्व इस्लामी चंद्र कैलेंडर के अंतिम महीने ‘धुल हिज्जा’ की 10वीं तारीख को मनाया जाता है। इससे एक दिन पहले ‘आराफात दिवस’ (यौम-उल-अराफा) मनाया जाता है, जिसे इस्लाम में सबसे पवित्र दिन माना जाता है।