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Budaun News: दस साल बाद भी मेडिकल कॉलेज का निर्माण कार्य 25 फीसदी बाकी
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राजकीय मेडिकल कॉलेज। संवाद
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बदायूं। राजकीय मेडिकल कॉलेज परियोजना दस साल बाद भी अधूरी है। कई बार डेडलाइन बढ़ाए जाने और अधिकारियों के निरीक्षणों के बावजूद निर्माण कार्य अपने तय समय में पूरा नहीं हो पाया है। इस बार निर्माण कार्य पूरा करने की अंतिम तिथि 31 दिसंबर है, लेकिन मौजूदा प्रगति को देखते हुए इस लक्ष्य का पूरा होना मुश्किल लग रहा है। वहीं लेटलतीफी से प्रोजेक्ट की लागत में भी 100 करोड़ की बढ़ोतरी हो चुकी है।
जिले को राजकीय मेडिकल कॉलेज की सौगात वर्ष 2012 में सपा शासनकाल में मिली थी। सपा शासन काल के दौरान वर्ष 2015 में राजकीय मेडिकल कॉलेज के निर्माण की शुरुआत हुई थी। शासन ने निर्माण का जिम्मा उत्तर प्रदेश निर्माण निगम को सौंपा। तभी से यह परियोजना कभी तकनीकी दिक्कतों, कभी भुगतान के अभाव और कभी ठेकेदार बदलने जैसी वजहों से बाधित होती रही।
दस साल बीतने के बाद भी अब तक केवल 75 फीसदी कार्य ही पूरा किया जा सका है। वहीं शेष 25 फीसदी काम में कई प्रमुख हिस्से शामिल हैं, जिनमें आंतरिक फिनिशिंग, उपकरणों की स्थापना व प्रशासनिक भवन की तैयारियां प्रमुख हैं। मात्र 20 दिन में इतने काम का पूरा हो पाना मुश्किल लग रहा है।
लगातार बढ़ाई जाती रही है प्रोजेक्ट की समय सीमा
राजकीय डिग्री कॉलेज के भवन निर्माण में देरी का सीधा असर लागत पर भी पड़ा है। परियोजना की प्रारंभिक लागत 545.21 करोड़ रुपये निर्धारित की गई थी, लेकिन नौ साल में पुनरीक्षित लागत के रूप में 100.90 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी दर्ज हो चुकी है। लगातार समय सीमा भी आगे बढ़ाई जाती रही है। स्थानीय लोगों और जनप्रतिनिधियों का कहना है कि मेडिकल कॉलेज शुरू होने से जिले की स्वास्थ्य सेवाओं में बड़ा सुधार होगा, लेकिन लगातार लटकते निर्माण के कारण जिले को लाभ मिलने में देरी हो रही है।
अधिकारियों के दावे, पर हकीकत उलट
अधिकारी दावा कर रहे हैं कि निर्माण कार्य ने अब गति पकड़ ली है और निर्धारित समयाविधि में शेष काम भी पूरा कर लिया जाएगा, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है। कॉलेज परिसर में कई स्थानों पर अब भी अधूरी इमारतें, निर्माण सामग्री के ढेर और धीमी रफ्तार से हो रहा काम स्पष्ट दिखता है। ठेकेदारों की ओर से यह तर्क दिया जा रहा है कि श्रमिकों की उपलब्धता और भुगतान संबंधित दिक्कतों के कारण देरी हुई है।
तीन हजार मरीज रोजाना आते हैं इलाज कराने
मेडिकल कॉलेज अधूरी व्यवस्थाओं के बीच ही 2018 में संचालित कर दिया गया था। ठेकेदार व निर्माण निगम की लापरवाही के चलते नौ साल बाद भी 25 फीसदी निर्माण कार्य अभी बाकी है। यहां रोजाना तीन हजार मरीज इलाज के लिए आते हैं। व्यवस्थाओं के अभाव में मेडिकल कॉलेज जैसी सुविधाएं अब तक जिले के लोगों को नहीं मिल पा रहीं हैं। ऐसे में गंभीर मरीजों को रेफर करने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचता।
निर्माण कार्य पूरा न होने पर लग चुका है 12 लाख का जुर्माना
हर साल मेडिकल कॉलेज की मान्यता का नवीनीकरण एनएमसी दिल्ली से कराया जाता है। हर साल इस शर्त पर मान्यता का नवीनीकरण होता है कि जल्द ही निर्माण कार्य पूरा करा लिया जाएगा। वर्ष 2024 में मान्यता पर खतरा मंडराया तो 31 दिसंबर 2025 तक कार्य पूरा होने की बात कही गई। इसके लिए मेडिकल कॉलेज पर 12 लाख जुर्माना लगाया गया था। तब कहीं जाकर नवीनीकरण हो सका था।
इस बार भी लग सकता है बढ़ा जुर्माना
दिसंबर 2025 तक निर्माण कार्य पूरा न होने से इस बार भी मान्यता के नवीनीकरण पर संकट रहेगा। अगर मान्यता नहीं मिली तो एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे करीब 500 विद्यार्थियों का भविष्य खतरे में पड़ सकता है। अन्यथा की स्थिति में मेडिकल कॉलेज को दूसरी फिर भारी अर्थदंड चुकाना पड़ सकता है।
ये हैं काम अधूरे
- राजकीय मेडिकल कॉलेज में दो लेक्चर रूम, मल्टी परपज हॉल और फाल्स सीलिंग।
-सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट एसटीपी का कार्य अधूरा होने से सभी शौचालय बंद हैं। गंदगी फैली हुई है।
-12 लिफ्ट में एक संचालित बाकी 11 लिफ्ट लगी ही नहीं। टावर चार और पांच अधूरे पड़े हैं।
- नर्सिंग छात्रावास में केवल आंशिक रूम उपलब्ध हैं। इंटर्न हॉस्टल का कार्य अपूर्ण है।
निर्माण निगम के ठेकेदार घोर लापरवाही करते आ रहे हैं। यही वजह है कि नौ साल बाद भी मेडिकल कॉलेज का 25 फीसदी निर्माण अधूरा है। इसका खामियाजा विभाग को झेलना पड़ रहा है। शासन को पत्र भेजकर अवगत करा दिया गया है। करीब दस दिनों से काम पूरी तरह से ठप है। यही वजह है कि समय के रहते निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सकेगा। -डॉ. अरुण कुमार, प्राचार्य, राजकीय मेडिकल कॉलेज, बदायूं
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जिले को राजकीय मेडिकल कॉलेज की सौगात वर्ष 2012 में सपा शासनकाल में मिली थी। सपा शासन काल के दौरान वर्ष 2015 में राजकीय मेडिकल कॉलेज के निर्माण की शुरुआत हुई थी। शासन ने निर्माण का जिम्मा उत्तर प्रदेश निर्माण निगम को सौंपा। तभी से यह परियोजना कभी तकनीकी दिक्कतों, कभी भुगतान के अभाव और कभी ठेकेदार बदलने जैसी वजहों से बाधित होती रही।
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दस साल बीतने के बाद भी अब तक केवल 75 फीसदी कार्य ही पूरा किया जा सका है। वहीं शेष 25 फीसदी काम में कई प्रमुख हिस्से शामिल हैं, जिनमें आंतरिक फिनिशिंग, उपकरणों की स्थापना व प्रशासनिक भवन की तैयारियां प्रमुख हैं। मात्र 20 दिन में इतने काम का पूरा हो पाना मुश्किल लग रहा है।
लगातार बढ़ाई जाती रही है प्रोजेक्ट की समय सीमा
राजकीय डिग्री कॉलेज के भवन निर्माण में देरी का सीधा असर लागत पर भी पड़ा है। परियोजना की प्रारंभिक लागत 545.21 करोड़ रुपये निर्धारित की गई थी, लेकिन नौ साल में पुनरीक्षित लागत के रूप में 100.90 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी दर्ज हो चुकी है। लगातार समय सीमा भी आगे बढ़ाई जाती रही है। स्थानीय लोगों और जनप्रतिनिधियों का कहना है कि मेडिकल कॉलेज शुरू होने से जिले की स्वास्थ्य सेवाओं में बड़ा सुधार होगा, लेकिन लगातार लटकते निर्माण के कारण जिले को लाभ मिलने में देरी हो रही है।
अधिकारियों के दावे, पर हकीकत उलट
अधिकारी दावा कर रहे हैं कि निर्माण कार्य ने अब गति पकड़ ली है और निर्धारित समयाविधि में शेष काम भी पूरा कर लिया जाएगा, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है। कॉलेज परिसर में कई स्थानों पर अब भी अधूरी इमारतें, निर्माण सामग्री के ढेर और धीमी रफ्तार से हो रहा काम स्पष्ट दिखता है। ठेकेदारों की ओर से यह तर्क दिया जा रहा है कि श्रमिकों की उपलब्धता और भुगतान संबंधित दिक्कतों के कारण देरी हुई है।
तीन हजार मरीज रोजाना आते हैं इलाज कराने
मेडिकल कॉलेज अधूरी व्यवस्थाओं के बीच ही 2018 में संचालित कर दिया गया था। ठेकेदार व निर्माण निगम की लापरवाही के चलते नौ साल बाद भी 25 फीसदी निर्माण कार्य अभी बाकी है। यहां रोजाना तीन हजार मरीज इलाज के लिए आते हैं। व्यवस्थाओं के अभाव में मेडिकल कॉलेज जैसी सुविधाएं अब तक जिले के लोगों को नहीं मिल पा रहीं हैं। ऐसे में गंभीर मरीजों को रेफर करने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचता।
निर्माण कार्य पूरा न होने पर लग चुका है 12 लाख का जुर्माना
हर साल मेडिकल कॉलेज की मान्यता का नवीनीकरण एनएमसी दिल्ली से कराया जाता है। हर साल इस शर्त पर मान्यता का नवीनीकरण होता है कि जल्द ही निर्माण कार्य पूरा करा लिया जाएगा। वर्ष 2024 में मान्यता पर खतरा मंडराया तो 31 दिसंबर 2025 तक कार्य पूरा होने की बात कही गई। इसके लिए मेडिकल कॉलेज पर 12 लाख जुर्माना लगाया गया था। तब कहीं जाकर नवीनीकरण हो सका था।
इस बार भी लग सकता है बढ़ा जुर्माना
दिसंबर 2025 तक निर्माण कार्य पूरा न होने से इस बार भी मान्यता के नवीनीकरण पर संकट रहेगा। अगर मान्यता नहीं मिली तो एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे करीब 500 विद्यार्थियों का भविष्य खतरे में पड़ सकता है। अन्यथा की स्थिति में मेडिकल कॉलेज को दूसरी फिर भारी अर्थदंड चुकाना पड़ सकता है।
ये हैं काम अधूरे
- राजकीय मेडिकल कॉलेज में दो लेक्चर रूम, मल्टी परपज हॉल और फाल्स सीलिंग।
-सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट एसटीपी का कार्य अधूरा होने से सभी शौचालय बंद हैं। गंदगी फैली हुई है।
-12 लिफ्ट में एक संचालित बाकी 11 लिफ्ट लगी ही नहीं। टावर चार और पांच अधूरे पड़े हैं।
- नर्सिंग छात्रावास में केवल आंशिक रूम उपलब्ध हैं। इंटर्न हॉस्टल का कार्य अपूर्ण है।
निर्माण निगम के ठेकेदार घोर लापरवाही करते आ रहे हैं। यही वजह है कि नौ साल बाद भी मेडिकल कॉलेज का 25 फीसदी निर्माण अधूरा है। इसका खामियाजा विभाग को झेलना पड़ रहा है। शासन को पत्र भेजकर अवगत करा दिया गया है। करीब दस दिनों से काम पूरी तरह से ठप है। यही वजह है कि समय के रहते निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सकेगा। -डॉ. अरुण कुमार, प्राचार्य, राजकीय मेडिकल कॉलेज, बदायूं
