देश में गरीबों के उत्थान के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के बावजूद मध्यप्रदेश के धार जिले में एक बुजुर्ग महिला अपने परिवार के साथ पिछले दस महीने से पेड़ के नीचे रहने को मजबूर है। लोहारी गांव की 80 वर्षीय गोरा बाई, अपनी विधवा बहू राधाबाई, नाती-पोतों और मवेशियों के साथ खुले आसमान के नीचे तिरपाल के सहारे गुजर-बसर कर रही हैं।
यह मामला सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं और प्रशासन की जमीनी हकीकत के बीच की गहरी खाई को उजागर करता है। प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) का लाभ पाने के लिए वृद्धा गोरा बाई पंचायत कार्यालय के चक्कर काट रही हैं, लेकिन अब तक उन्हें न तो स्थायी मकान मिला और न ही कोई राहत।
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टूटा मकान और टूटी उम्मीदें, पेड़ बना आश्रय
करीब दस माह पहले गोरा बाई का कच्चा मकान बारिश में ढह गया था। तब से अब तक वह अपनी बहू और बच्चों के साथ एक पेड़ के नीचे तिरपाल की ओट में जीवन गुजार रही हैं। बरसात हो या सर्दी-गर्मी, वह और उनका परिवार खुले में जीने को विवश है। बिजली कड़कती है तो बच्चे डर से कांपने लगते हैं, लेकिन शासन-प्रशासन की आंखें अब तक नहीं खुलीं।
गोरा बाई का कहना है कि पटवारी आई थी, चौकीदार आया था, मंत्री भी आए थे, फोटो भी खींचे गए, लेकिन जवाब किसी ने नहीं दिया। कहा गया कि नाम सूची में नहीं है, इसलिए लाभ नहीं मिल सकता। भोपाल तक शिकायत की, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
जॉब कार्ड बना रोड़ा
ग्राम पंचायत लोहारी के सरपंच अमर सिंह वास्केल का कहना है कि राधाबाई का जॉब कार्ड तकनीकी कारणों से अटका हुआ है, जिससे पीएम आवास योजना की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पा रही है। उनका दावा है कि परिवार पहले सामूहिक रूप में सूचीबद्ध था, और गोरा बाई के बड़े बेटे भागीरथ को पहले ही आवास योजना का लाभ मिल चुका है। अब परिवार अलग हो गया है, लेकिन जॉब कार्ड अपडेट नहीं हो पाने के कारण नई इकाई को आवास की मंजूरी नहीं मिल पा रही है। सरपंच का यह भी कहना है कि पंचायत स्तर पर इस समस्या का समाधान संभव नहीं है, और महिला को जिला कार्यालय में अपनी बात रखनी चाहिए थी।
जिला पंचायत ने दिए निर्देश, लेकिन समाधान अभी अधूरा
इस गंभीर मामले के उजागर होने के बाद धार जिले के जिला पंचायत सीईओ अभिषेक चौधरी ने इसे गंभीरता से लिया है। उन्होंने बताया कि जांच में यह सामने आया है कि राधाबाई के नाम डुप्लीकेट जॉब कार्ड होने के कारण उन्हें आवास योजना का लाभ नहीं मिल पाया। हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि परिवार अब स्वयं के प्रयासों से पक्का मकान बना रहा है। चौधरी ने पंचायत को निर्देश दिया है कि जब तक स्थायी समाधान नहीं निकलता, तब तक कोई भी रिक्त शासकीय भवन या आश्रय स्थल उपलब्ध कराकर परिवार को अस्थायी राहत दी जाए।
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प्रशासनिक संवेदनहीनता पर उठे सवाल
यह मामला शासन की योजनाओं और प्रशासनिक अमले की संवेदनहीनता पर सवाल खड़े करता है। जहां एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव मंचों से गरीबों की चिंता करने की बातें करते हैं, वहीं जमीनी हकीकत में एक महिला दस महीने से बेघर है, और ब्यूरोक्रेसी की उलझनों में फंसी हुई है।
ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि इतनी लंबी अवधि तक कोई परिवार पेड़ के नीचे जीवन बिता रहा है, तो यह स्थानीय प्रशासन की विफलता का स्पष्ट प्रमाण है। लोगों ने इस घटना की निष्पक्ष जांच कर दोषी कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।