आदिवासी बहुल डिंडोरी जिले में ग्रामीणों की समस्याओं को गांव स्तर पर ही हल करने के उद्देश्य से कलेक्टर नेहा मरकाम ने हर मंगलवार ग्राम पंचायत स्तर पर जनसुनवाई आयोजित करने के निर्देश दिए थे। इस पहल का उद्देश्य था कि ग्रामीणों को जिला मुख्यालय तक न जाना पड़े और उन्हें स्थानीय स्तर पर ही राहत मिले। लेकिन जमीनी हकीकत इससे उलट नजर आ रही है।
अधूरी जनसुनवाई, जिम्मेदार नदारद
ग्राम पंचायत कनईसांगवा में जनसुनवाई तो आयोजित की गई, लेकिन इसमें केवल सचिव और रोजगार सहायक ही मौजूद रहे। पटवारी सहित अन्य प्रमुख अधिकारी जनसुनवाई से गायब थे। ग्रामीण समस्याएं लेकर पहुंचे, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था। इससे कार्यक्रम का उद्देश्य ही निरर्थक साबित हो गया।
जनसुनवाई का नामोनिशान तक नहीं
वहीं ग्राम पंचायत सिमरिया में स्थिति और भी खराब रही। यहां जनसुनवाई का आयोजन ही नहीं किया गया। ग्रामीण जब पंचायत भवन पहुंचे तो वहां कोई अधिकारी मौजूद नहीं था। सरपंच से पूछने पर उन्होंने किसी अन्य कार्यक्रम में व्यस्त होने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया। बाद में जब विवाद बढ़ा, तो पंचायत सचिव मौके पर पहुंचे और इसे ग्रामीणों की “गलतफहमी” बता दिया। लेकिन खाली कुर्सियां और सूना पंचायत भवन कुछ और ही कहानी कह रहे थे।
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शासन की मंशा पर सवाल
जिस उद्देश्य से यह जनसुनवाई शुरू की गई थी, वो लापरवाह अधिकारियों की वजह से फेल होता नजर आ रहा है। इससे ना सिर्फ शासन की मंशा को ठेस पहुंचती है, बल्कि ग्रामीणों का विश्वास भी सरकारी सिस्टम से उठता जा रहा है।
कलेक्टर से कार्रवाई की मांग
अब ग्रामीणों और जागरूक नागरिकों की मांग है कि कलेक्टर नेहा मरकाम स्वयं जनसुनवाइयों का अचानक निरीक्षण करें और अनुपस्थित अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। जनसुनवाई जैसे कार्यक्रम तभी सफल हो सकते हैं जब उसमें जवाबदेही और पारदर्शिता हो।
डिंडोरी जैसे आदिवासी इलाके में लोगों के पास जिला मुख्यालय तक बार-बार पहुंचना मुश्किल होता है। ऐसे में ग्राम पंचायत स्तर पर प्रभावी जनसुनवाई जरूरी है। अगर अधिकारी इसी तरह लापरवाही बरतते रहे, तो ये योजना भी सिर्फ कागज़ों तक ही सीमित रह जाएगी। सकारात्मक बात यह है कि ग्रामीण अब अपने अधिकारों को लेकर जागरूक हो रहे हैं और व्यवस्था की खामियों को पहचानने लगे हैं। अब समय है कि प्रशासन इस लापरवाही पर सख्ती से अंकुश लगाए, ताकि जनसुनवाई वास्तव में जनता की सुनवाई बन सके।