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VIDEO: हरि की पौड़ी के वराह घाट पर उमड़ा आस्था का सैलाब, संतों ने लुटाया खजाना
सोरोंजी में वार्षिक अमृत कुंभ मार्गशीर्ष द्वादशी पर तीर्थनगरी में आस्था का सैलाब उमड़ा। भगवान वराह के मोक्ष दिवस पर श्रद्धालुओं ने वराह घाट पर गंगास्नान किया। प्राचीन परंपरा के अनुसार सबसे पहले क्षेत्राधीश वराह मंदिर के महंत विदेहानन्द गिरि गाजे बाजे के साथ मन्दिर परिसर से अपने शिष्यों के साथ बाहर निकले, हरि की पौड़ी के वराह घाट पर गंगा स्नान के लिए पहुंचे। संत महंतों के डुबकी लगाने के साथ ही हजारों की संख्या में वराह घाट पर उपस्थित श्रद्धालुओं ने भी जय गंगे जय वाराह के जयकारे लगाते हुए आस्था की डुबकी लगाई। मान्यता है कि मार्गशीर्ष द्वादशी पर भगवान वराह हरि की पौड़ी गंगा में शरीर त्यागकर मोक्षधाम के लिए चले गए। तभी से हरि की पौड़ी के कुंड में विसर्जित की जाने वाली अस्थियां जलरूप में परिवर्तित हो जाती हैं। इसके अलावा द्वादशी पर स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी मान्यता के चलते द्वादशी पर्व पर हरि की पौड़ी घाट पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। गंगास्नान के लिए दूर दराज इलाकों से आए श्रद्धालुओं की भीड़ पहुंची। गंगास्नान करने के बाद श्रद्धालुओं ने हरि की पौड़ी के घाट पर हवन पूजन सहित तमाम धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए। भगवान वराह के दर्शन कर व आरती उतारकर पुण्य लाभ अर्जित किया। हर हर गंगे के जयकारों से तीर्थनगरी गुंजायमान हो रही थी। गंगास्नान के बाद मंदिरों में पहुंचकर देव दर्शन किए। वराह घाट पर गंगास्नान करने के बाद वराह मंदिर के महंत ने भगवान वराह की विश्राम छतरी के नीचे खड़े होकर श्रद्धालुओ की तरफ खजाना रूपी सिक्के उछाले। सन्तों द्वारा उछाले जा रहे सिक्के को पाने की लोगों में होड़ लगी रही। श्रद्धालुओं में मान्यता है कि यह सिक्के अपने गल्ले या तिजोरी में रखने पर धन की वृद्धि होती है। महंत विदेहानन्द गिरी ने बताया कि प्राचीनकाल मे मुगल शासनकाल में विध्वंस हुए इस मंदिर का नेपाल नरेश ने जीर्णोद्धार कराया था। नेपाल नरेश इस महापर्व पर चांदी सोने के सिक्के की वर्षा करते थे तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
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