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#हिंदीहैंहम: जिन्हें डॉ. रामविलास ने नकार दिया, वे पाठकों के मन से उतर गए, 65 वर्षों तक किया लेखन कार्य
न्यूज डेस्क अमर उजाला, आगरा
Published by: Abhishek Saxena
Updated Sun, 29 Aug 2021 10:52 AM IST
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डॉ. रामविलास शर्मा
- फोटो : अमर उजाला

कहा जाता था कि जिन साहित्यकारों के लेखन को डॉ. रामविलास शर्मा ने नकार दिया, वह लेखक पाठकों के मन से भी उतर जाते थे। इन साहित्यकारों और रचनाकारों को फिर से स्थापित करने के लिए दूसरे आलोचकों के पसीने छूट जाते थे। डॉ. शर्मा की पहचान हिंदी साहित्य की प्रगतिवादी आलोचना के पितामह के रूप में थी।
करीब 65 साल के अपने सक्रिय लेखनकाल के दौरान उन्होंने सौ से अधिक किताबें लिखीं। इनमें अधिकांश आलोचना ग्रंथ थे। हिंदी साहित्य के महान आलोचक, कवि, निबंधकार, भाषाविद् और इतिहासकार डॉ. रामविलास शर्मा को मौलिक मार्क्सवादी विचारकों में शुमार किया जाता है। उन्होंने अंग्रेजी में पीएचडी की थी। पीएचडी करने के बाद वह अंग्रेजी पढ़ाने भी लगे।
दस अक्तूबर, 1912 को उन्नाव जिले के ऊंच गांव सानी में जन्मे डॉ. रामविलास शर्मा ने लखनऊ विवि से अंग्रेजी में एमए किया था। साल 1940 में वहीं से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1943 से राजपूत कॉलेज (वर्तमान में आरबीएस कॉलेज) के अंग्रेजी विभाग में अध्यापन किया और विभागाध्यक्ष भी रहे। साल 1971-74 तक आगरा विवि परिसर स्थित केएमआई हिंदी विद्यापीठ में निदेशक का पदभार संभाला। 1974 में ही वे सेवानिवृत्त हो गए। लेखन कार्य उन्होंने साल 1934 से शुरू कर दिया था। जीवन के अंतिम क्षणों तक उन्होंने लेखन कार्य किया। 30 मई, 2000 को उनका निधन हो गया।
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करीब 65 साल के अपने सक्रिय लेखनकाल के दौरान उन्होंने सौ से अधिक किताबें लिखीं। इनमें अधिकांश आलोचना ग्रंथ थे। हिंदी साहित्य के महान आलोचक, कवि, निबंधकार, भाषाविद् और इतिहासकार डॉ. रामविलास शर्मा को मौलिक मार्क्सवादी विचारकों में शुमार किया जाता है। उन्होंने अंग्रेजी में पीएचडी की थी। पीएचडी करने के बाद वह अंग्रेजी पढ़ाने भी लगे।
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दस अक्तूबर, 1912 को उन्नाव जिले के ऊंच गांव सानी में जन्मे डॉ. रामविलास शर्मा ने लखनऊ विवि से अंग्रेजी में एमए किया था। साल 1940 में वहीं से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1943 से राजपूत कॉलेज (वर्तमान में आरबीएस कॉलेज) के अंग्रेजी विभाग में अध्यापन किया और विभागाध्यक्ष भी रहे। साल 1971-74 तक आगरा विवि परिसर स्थित केएमआई हिंदी विद्यापीठ में निदेशक का पदभार संभाला। 1974 में ही वे सेवानिवृत्त हो गए। लेखन कार्य उन्होंने साल 1934 से शुरू कर दिया था। जीवन के अंतिम क्षणों तक उन्होंने लेखन कार्य किया। 30 मई, 2000 को उनका निधन हो गया।
बहुआयामी रहा लेखन
डॉ. रामविलास शर्मा का लेखन बहुआयामी रहा। साहित्य आलोचना की उनकी तीन पुस्तकें, प्रगति और परंपरा, संस्कृति और साहित्य व साहित्य: स्थायी मूल्य और मूल्यांकन, काफी चर्चा में रहीं। चार दिन, पाप के पुजारी, महाराजा कठपुतली सिंह, मेरे साक्षात्कार, आज के सवाल और मार्क्सवाद, रूपतरंग, मानव सभ्यता का विकास, मार्क्स और पिछड़े हुए समाज, पश्चिमी एशिया और ऋग्वेद, इतिहास दर्शन, भाषा और समाज... सहित उनकी तमाम कृतियां आज भी प्रासंगिक हैं।
निराला पर लिखा शोधपत्र
कवियत्री डॉ. शशि तिवारी कहती हैं कि डॉ. रामविलास शर्मा सबसे अधिक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कृतियों को पसंद करते थे। उन पर शोधपत्र भी लिखा था। निराला, निराला की साहित्य साधना (तीनों खंड), प्रेमचंद, भारतेंदु युग, प्रेमचंद और उनका युग, भारतेंदु हरीशचंद्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण, मार्क्सवाद और प्रगतिशील साहित्य, भारतीय इतिहास की भूमिका सहित उनकी कई रचनाएं पाठकों के मन में बसती हैं।
ये मिले पुरस्कार
निराला की साहित्य साधना के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, शलाका सम्मान, भारत भारती पुरस्कार, व्यास सम्मान, शताब्दी सम्मान सहित तमाम पुरस्कारों से उन्हें नवाजा गया।
#हिंदीहैंहम: अमृत लाल नागर की रगों में बसता था आगरा, तस्लीम लखनवी नाम से लिखीं कविताएं और लेख
डॉ. रामविलास शर्मा का लेखन बहुआयामी रहा। साहित्य आलोचना की उनकी तीन पुस्तकें, प्रगति और परंपरा, संस्कृति और साहित्य व साहित्य: स्थायी मूल्य और मूल्यांकन, काफी चर्चा में रहीं। चार दिन, पाप के पुजारी, महाराजा कठपुतली सिंह, मेरे साक्षात्कार, आज के सवाल और मार्क्सवाद, रूपतरंग, मानव सभ्यता का विकास, मार्क्स और पिछड़े हुए समाज, पश्चिमी एशिया और ऋग्वेद, इतिहास दर्शन, भाषा और समाज... सहित उनकी तमाम कृतियां आज भी प्रासंगिक हैं।
निराला पर लिखा शोधपत्र
कवियत्री डॉ. शशि तिवारी कहती हैं कि डॉ. रामविलास शर्मा सबसे अधिक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कृतियों को पसंद करते थे। उन पर शोधपत्र भी लिखा था। निराला, निराला की साहित्य साधना (तीनों खंड), प्रेमचंद, भारतेंदु युग, प्रेमचंद और उनका युग, भारतेंदु हरीशचंद्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण, मार्क्सवाद और प्रगतिशील साहित्य, भारतीय इतिहास की भूमिका सहित उनकी कई रचनाएं पाठकों के मन में बसती हैं।
ये मिले पुरस्कार
निराला की साहित्य साधना के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, शलाका सम्मान, भारत भारती पुरस्कार, व्यास सम्मान, शताब्दी सम्मान सहित तमाम पुरस्कारों से उन्हें नवाजा गया।
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