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Mandi: देव चुंजवाला के हूम में उमड़ा जनसैलाब, 25,000 से अधिक भक्तों ने किए दर्शन
साढ़े नौ हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित चुंजवाला धार पर देव श्री चुंजवाला के वार्षिक हूम (जाग) उत्सव में भक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। इस पावन अवसर पर मंदिर परिसर और बागीथाच गढ़ में इतनी भीड़ जुटी कि पैर रखने की जगह भी नहीं बची। अनुमानित 20 से 25 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य देवता के दर्शन कर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त किया।
देव रथ की परंपरागत यात्रा और रात्रि आराधना
इस उत्सव के लिए देव रथ को देवता की मुख्य कोठी कांडा से वाद्य यंत्रों और परंपरागत रीति-रिवाजों के साथ चुंजवाला के मूल मंदिर तक लाया गया। पूरी रात भक्तों ने देव आराधना में भाग लिया, और देव रथ को गर्भगृह में प्रवेश करवाया गया। देव आज्ञा से देवता के गूर ने देव खेल के दौरान श्रद्धालुओं की समस्याओं का समाधान भी किया।
महादेव का अवतार माने जाते हैं देव चुंजवाला:
देव समाज में देव श्री चुंजवाला को महादेव शिव का अवतार माना जाता है। इस वार्षिक हूम में देवता की सात हारियों (क्षेत्रों) के हारियान अपने बच्चों के मुंडन संस्कार की रस्म भी पूरी करते हैं। जेष्ठ मास की संक्रांति के दिन सुबह से ही मुंडन की प्रक्रिया शुरू हुई, और दोपहर तक 40 से अधिक बच्चों के मुंडन संस्कार देव कारिंदों के माध्यम से संपन्न हुए।
नाटी, मशालें और दर्शन का क्रम
देवता कमेटी के अध्यक्ष देवराज रावत ने बताया कि बीती रात हूम प्रक्रिया के तहत हारियानों ने नाटी का आयोजन किया, जिसके बाद मशालें जलाई गईं। सुबह देवता गर्भगृह से बाहर निकले और भक्तजनों को दर्शन दिए। इस दौरान उमड़े जनसैलाब को नियंत्रित करने के लिए देव कारिंदों को खूब मेहनत करनी पड़ी।
परंपराओं का निर्वहन
प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा के अनुसार, एक वर्ष देवता को शालागाड़ से लाया जाता है, और अगले वर्ष कांडा से। देवता को मूल स्थल तक पहुंचाने के लिए अंतिम 100 मीटर की दूरी, जो आमतौर पर 10 मिनट में तय हो जाती है, इस बार भीड़ और उत्साह के कारण 1 से 1.5 घंटे में पूरी हुई।
देवता की मान्यताएं और चमत्कार
मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से महादेव के हूम में आते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इतना ही नहीं, अगर कोई श्रद्धालु मन्नत रखने के बाद किसी कारणवश इस पावन धरा पर नहीं पहुंच पाता, तो केवल इस स्थल को सोचने मात्र से ही देव चुंजवाला उसकी मनोकामना पूरी करते हैं। भक्त पुत्र प्राप्ति की मुराद लेकर भूखे-प्यासे देवता के पास आते हैं, और उनकी सच्ची भक्ति देखकर देवता उन्हें पुत्र प्रदान करते हैं।
खड़ी चढ़ाई और माता जोगणी की कथा:
देवता कारदार बुद्धे राम ने बताया कि देवता की कोठी से मूल स्थान तक की 4 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई में कई परंपराएं निहित हैं। रास्ते में माता जोगणी का निवास है, जो देवता को रोकने का प्रयास करती हैं। इसे रोकने के लिए सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार, पहले देव रथ को एक रस्सी (देव निती में रैज कहा जाता है) से खींचकर चुंजवाला गढ़ तक लाया जाता था। अब युवा कारिंदे और देवलु एक-दूसरे के हाथ पकड़कर मजबूत चेन बनाकर इस चढ़ाई को पार करते हैं। इस पावन उत्सव ने एक बार फिर भक्ति, परंपरा और आस्था का अद्भुत संगम प्रस्तुत किया, जहां हजारों भक्तों ने देवता की कृपा प्राप्त की।
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