दीपावली का पर्व पूरे देश में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी के पूजन का विशेष महत्व होता है। हिंदू सनातन मान्यताओं के अनुसार, माता लक्ष्मी धन, संपदा और वैभव प्रदान करने वाली देवी मानी जाती हैं।
माता लक्ष्मी पूजन की परंपरा सनातन धर्म में सदियों से चली आ रही है। देशभर में विशेषकर महाराष्ट्र में माता लक्ष्मी के अनेक प्राचीन मंदिर स्थित हैं। इन्हीं में से एक ऐतिहासिक और दुर्लभ मंदिर मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में, सागर शहर में स्थित है।
मराठों ने कराया था निर्माण
सागर शहर के विस्तार और विकास का श्रेय मराठाओं को दिया जाता है। 17वीं शताब्दी में मराठों के बुंदेलखंड आगमन के बाद यहां अनेक भव्य इमारतें और मंदिरों का निर्माण हुआ। इन्हीं में एक लगभग 300 वर्ष पुराना महालक्ष्मी मंदिर भी है, जो आम जनता के लिए वर्षभर में केवल दशहरे और दीपावली के दिन ही खुलता है। इन पर्वों पर दूर-दूर से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं और मां लक्ष्मी से मनोकामना पूर्ण होने की प्रार्थना करते हैं।
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कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर जैसी प्रतिमा
कहा जाता है कि सागर के महालक्ष्मी मंदिर और महाराष्ट्र के कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर में एक साथ प्रतिमाओं की स्थापना की गई थी। दोनों ही मंदिरों की प्रतिमाओं में समानता है। फर्क सिर्फ इतना है कि कोल्हापुर की महालक्ष्मी काले पत्थर से बनी हैं, जबकि सागर की महालक्ष्मी की प्रतिमा सफेद पत्थर की है। यह मंदिर आज भी एक मराठी सूबेदार परिवार के संरक्षण में है। वही परिवार पीढ़ियों से मंदिर की पूजा-अर्चना करता आ रहा है। सामान्य दिनों में मंदिर सुबह और शाम सिर्फ आधे घंटे के लिए खोला जाता है, जबकि दशहरा और दीपावली पर यह सुबह से रात 9 बजे तक खुला रहता है।
मंदिर की संरचना
यह मंदिर सागर शहर के लक्ष्मीपुरा क्षेत्र में सूबेदार वाड़ा परिसर के भीतर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 30 फीट ऊंची सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। प्रवेश द्वार से अंदर जाने पर गोल गुंबद वाला विशाल प्रांगण है, जिसमें भगवान विष्णु के सभी अवतारों की झलक दिखाई देती है। इसके आगे गर्भगृह है, जहां ऊंचे सिंहासन पर माता महालक्ष्मी विराजमान हैं। नवरात्रि, दशहरा, धनतेरस और दीपावली के अवसर पर माता का विशेष शृंगार और पूजन किया जाता है।
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पुजारियों की संकोचपूर्ण परंपरा
इतना प्राचीन और सिद्ध मंदिर होने के बावजूद सागर शहर के अधिकांश लोगों को इस मंदिर के बारे में जानकारी नहीं है। इसका कारण यह है कि पीढ़ियों से पूजा कर रहे सूबेदार परिवार के पुजारी इसे अपनी निजी संपत्ति मानते हैं। उनका कहना है कि यदि अधिक प्रचार-प्रसार होगा तो यहां भीड़ बढ़ जाएगी, जिससे व्यवस्था बनाना मुश्किल होगा। इसी कारण मंदिर वर्षभर अधिकतर समय बंद रहता है और केवल कुछ विशेष अवसरों पर ही आम जनता के लिए खोला जाता है।