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VIDEO : जीवित्पुत्रिका व्रत की कहानी बीएचयू प्रोफेसर की जुबानी
आज जीवित्पुत्रिका का व्रत है।माताएं पुत्र की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं।अश्विन महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका के व्रत के तौर पर किया जाता है ।इस दौरान माताएं निराजल व्रत रखती हैं और सरोवर के किनारे जाकर पूजा पाठ करती हैं।मान्यता है कि इस व्रत को करने वाली महिला के पुत्र शतायु होता है। व्रत के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। इस व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ती है कहा जाता है कि उत्तरा के गर्भ पर अश्वत्थामा ने बांण चलाया और उसके गर्भ को नष्ट कर दिया तब भगवान श्रीकृष्ण ने जीवित किया और उस वक्त यही तिथि थी। इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि द्रौपदी के पुत्र जब महाभारत युद्ध के दौरान मारे गए तब द्रौपदी उनका सिर लेकर भगवान श्रीकृष्ण के पास जाती है और तब श्रीकृष्ण उन्हें जीवित्पुत्रिका की कहानी बताते हैं।
एक कथा गंधर्व के राजकुमार जब अपने ससुराल गए तो इन्हें रात में रोने की आवाज आई पूछा तो पता चला कि नागवंशी कन्या ने कहा मेरा एक पुत्र है और गरूण रोजाना हमारे वंश के पुत्रों का बारी बारी से का नाश कर रहा इस बार मेरे पुत्र की बारी है जब व्यथा सुनी तो खुद जाने की बात कही और चले गए जब इनका सामना गरूण से हुआ और गरूण इनको खाने लगा तब पूछा कि आप कौन हो इन्होंने जब अपने बारे में बाताया तब गरूण ने इनकी उदारता पर प्रसन्नता दिखाई और इनसे वरदान मांगने को कहा इन्होंने वरदान में मृत नागवंशियों का जीवन मांगा और गरूण ने ये भी कहा कि जो भी महिला आज के दिन व्रत रखेगी उसका पुत्र दीर्घायु को प्राप्त करेगा।
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