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ई-केवाईसी के लिए रोज पहाड़ पर चढ़ते हैं ग्रामीण, नेटवर्क न होने से बढ़ी परेशानी, VIDEO
आंगनबाड़ी केंद्रों से पोषाहार पाने वाले लाभार्थियों के लिए ई-केवाईसी की प्रक्रिया फजीहत बन गई है। उन इलाकों में जहां बात करने के लिए भी मोबाइल नेटवर्क नहीं है, वहां ई-केवाईसी के लिए नेटवर्क ढूंढने में छक्के छूट जा रहे हैं। नेटवर्क की तलाश में रोज ग्रामीण पहाड़ चढ़ते हैं। काफी जद्दोजहद के बाद सिग्नल मिलने पर भी कई घंटों में उनकी प्रक्रिया पूरी होती है।जिले में 50 से अधिक गांवों में अभी भी नेटवर्क बड़ी समस्या है। मुनाफे की चाह में निजी टेलीकॉम कंपनियां इन गांवों का रूख नहीं कर रही और बीएसएनएल संसाधनों के अभाव का रोना रो रहा है। नतीजा ग्रामीणों के लिए मोबाइल सेट सिर्फ खिलौना ही साबित हो रहे हैं। इन ग्रामीणों के लिए शासन के फरमान मुसीबत बढ़ा रहे हैं। आंगनबाड़ी केंद्रों से पोषाहार वितरण के लिए ई-केवाईसी की प्रक्रिया अनिवार्य की गई है। पोषण ट्रैकर एप पर लाभार्थियों का चेहरा प्रमाणीकरण भी करना पड़ रहा है। ई-केवाईसी और चेहरा प्रमाणीकरण की प्रक्रिया पोषण ट्रैकर एप के माध्यम से की जा रही है। नेटवर्क न होने से यह एप नहीं चल रहा। ऐसे में नेटवर्क विहीन इलाकों में लाभार्थियों और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की मुश्किल बढ़ गई है। चोपन ब्लॉक के जुगैल गांव में चेहरा प्रमाणीकरण के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। छोटे बच्चों को लेकर महिला, पुरुष हर रोज करीब फीट ऊंची पहाड़ी पर चढ़ते हैं।इसी पहाड़ी पर ही उन्हें गाहे-बगाहे नेटवर्क मिलता है। चेहरा प्रमाणीकरण कराने पहुंची आशा देवी बताती हैं कि ई-केवाईसी न कराने पर पोषाहार बंद होने की चेतावनी दी गई है। बच्चे को स्वस्थ रखने के लिए पोषाहार जरूरी है। मजबूरी में कामकाज छोड़कर आए हैं। शीला भी अपनी बारी का इंतजार करती रहीं। दोनों महिलाएं एक घंटे से बैठी थीं, लेकिन बार-बार नेटवर्क छोड़ने से उनकी ई-केवाईसी नहीं हो पा रही थी। यहां मौजूद शिवशंकर यादव बताते हैं कि चाहे ई-केवाईसी करानी हो या फिर एंबुलेंस बुलानी हो।
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